क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है...
आतंकियों के सर नया फितूर दिखाई देता है, सेना पर हमले का नया दस्तूर दिखाई देता है। जख़्म पुराना ये कोई नासूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। आंतक रहित राष्ट्र का सपना चूर दिखाई देता है, हाफिज जैसों के चेहरों पर नूर दिखाई देता है। आतंकी राहों पर, मील का पत्थर दूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। उनको क्या समझाने चले हो, जिनका मन काला है, अलगाववाद की बुद्धि पर आतंक का ताला है। वो भूखे बच्चों के मुंह से छीन रहा निवाला है, सिर्फ एक सर्जिकल से कुछ नहीं होने वाला है। आतंक से ना लड़ पाने में अपना ही कसूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। सीखो कुछ अमरीका के मापदंडों से, कैसे लड़ते हैं आतंक से, अपने ही हथकंडों से, कब तुम चौंधियाओगे खूनी इन तरंगों से, अब तो ले लो बदला तुम देश के इन जयचंदों से। अपने ही घर में कायरता का शुरूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। विनोद विद्रोही