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Showing posts from December, 2016

ये कैसा दौर है समाजवादी का....

ये कैसा दौर है समाजवादी का....परिदर्श दिख  रहा सिर्फ़  बर्बादी का। सम्मान की लड़ाई में रिश्तों के टूटने का भय रहता है... घर में भेदी हो तो लंका ढह जाना तय रहता है।।       विनोद विद्रोही

मां धरती है तो पिता आकाश है....

मां धरती है तो पिता आकाश है, मां सवेरा है तो पिता प्रकाश है। मां उम्मीद है तो पिता विश्वास है, मां प्यार है तो पिता एहसास है। ये वो रिश्ता है, जो जगत में सबसे खास है, खुशनसीब हैं वो जिनके पिता उनके पास हैं। विनोद विद्रोही

क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है.....

क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है, ऐ मेरे मालिक तूने बेटी बनाकर, क्यों कर दिया इतना बड़ा पाप है, क्या तू  नहीं जानता, इंसानों की इस बस्ती में शैतानों के भी बाप हैं। कहीं निर्भया ने तोड़ा दम है, तो कहीं नन्ही सी गुड़िया मांगे इंसाफ है, मत करो ऐसे कर्म जो इंसानियत के खिलाफ है, क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है।। अरे ओ वहशी दरिंदे क्या तुझे जरा भी लाज नहीं आई, क्या नहीं कांपी तेरी रूह, क्या तेरी नज़रें नहीं शर्माई। अरे कैसे भूल गया, तू भी तो किसी मां की गोद में खेला था, तूने भी तो किसी बहना से थी राखी बंधाई, फिर क्यों तार-तार है इंसानियत, क्यों शर्मसार हुई ये खुदाई। अरे तेरी इस हरकत से ये धरती तक गई कांप है, क्या सचमुच इस देश में बेटी होना अभिशाप है।। लटका दो सूली पर कर दो सरकलम, सजा दो ऐसी इन दरिंदों को कि याद रखें जन्मों जन्म। ताकि फिर ना किसी बेटी का दामन ना हो दागदार, फिर ना किसी गुडि़या की अस्मत लुटे सरे बाजार। अरे बेटियों से ही ये दुनिया है, बेटी से ही हम और आप हैं, फिर क्यों इस देश में बेटी होना अभिशाप है। विनोद विद्रोही

कैसे-कैसे सियासी मोड़ लेते हो,

कैसे-कैसे सियासी मोड़ लेते हो, वोट के लिए सबकुछ जोड़-तोड़ लेते हो। हर अच्छे काम का आगे आकर होड़ लेते हो, जब होने लगता है खुलासा तु्म्हारी कारगुजारी का, तुरंत जाति वाला चोला ओढ़ लेते हो।। विनोद विद्रोही

ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को...

ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को, जब मिटाया गया सिंदूर, उतारे गये मां की चूड़ी-कंगन को, उसका सबकुछ छीन गया मां ये भांप गई थी, मां के रूदन से धरती तक कांप गई थी। हे मेरे मालिक ये कैसा कहर तूने हमपर बरपाया था, छाती फट गई थी कलेजा हाथ में आया था। जीवन ने पहली बार ऐसा समय दिखाया था, दिन के उजाले में भी अंधेरा सा छाया था। घर के आंगन में भारी भीड़ का भरमाया था, जब पिता का पार्थिव शरीर अस्पताल से घर आया था। कैसे बताऊं कैसा वो सैलाब था, ऐसा लगता घर नहीं, जैसे कोई आंसूओं को तलाब था।। स्तब्ध खड़ा देख रहा था मैं एक अशोभनीय परिवर्तन को, ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को।। पिता आज नहीं, उनको गए सालों बीत गए, आखों के ये आंसू आंखों में ही सूख गए। लेकिन घर आज भी जैसे चलता था, वैसे ही चलता है, सबसे पहले खाना आज भी पिता के लिए ही निकलता है। मां की ये मासूमियत मुझे खूब भाती, पिता की तस्वीर के रोज खाने का भोग लगाती है। आज भी़ महसूस करता हूं मैं उस आवाज़ को, उस कंपन को, ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को। विनोद विद्रोही

जिंदगी इसी का नाम है, कर लो जो काम है...

दोस्तों कल चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ चौथे दिन का खेल देखकर जीवन का भी खेल समझ में आया। जीवन भी कुछ ऐसा ही है, कब इसका पासा पलट जाए कहा नहीं जा सकता है।  साथ ही करुण नायर की बैटिंग देखकर अभिनेता रणबीर सिंह की एड में रॉयल स्टैग की टैग लाइन याद भी आई, "इट्स योर लाइफ मेक इट लार्ज"। दोस्तों करुण नायर की चौथे दिन के खेल की बैटिंग से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सोचिए कल जब सुबह के सत्र में करुण बैटिंग करने उतरे थे तब वो क्या थे और शाम होते-होते क्या बन गए। कल सुबह तक जिस करुण को भारत में भी कुछ क्रिकेट प्रेमी ही शायद जानते थे, शाम होते-होते पूरा विश्व करुण नायर से रुबरू हो चुका था। इसे ही कहते हैं जिंदगी, जब ये मेहरबान होती है तो स्टार बनते देर नहीं लगती है। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में इंसान की लगन, मेहनत और सबसे अहम भाग्य की भी बड़ी भूमिका होती है। क्योंकि भाग्य भी उनका ही साथ देता है जिनमें कुछ करने का जज्बा होता है, कुछ कर गुजरने की चाह होती है। दोस्तों यहां करुण नायर की बात करके ये समझाना चाहता हूं, व्यक्ति का जीवन भी कुछ ऐसा ही है, कब इसमें तब्दीली आ जाए कहा नहीं जा सकता

भारत मां के ऐसे लालों को गद्दार बताते हो।।

विरोध के इन सुरों को अधिकार बताते हो, बांटकर भी नफरत खुद को वफादार बताते हो। स्वार्थ के लिए जाने किन-किन चीजों को स्वीकार बताते हो, आतंकी के परिवारों को भी मदद का हकदार बताते हो। फांसी के फंदे पर झूल गए जो देश की खातिर, भारत  मां के ऐसे लालों को तुम गद्दार बताते हो।। विनोद विद्रोही