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Showing posts from 2016

ये कैसा दौर है समाजवादी का....

ये कैसा दौर है समाजवादी का....परिदर्श दिख  रहा सिर्फ़  बर्बादी का। सम्मान की लड़ाई में रिश्तों के टूटने का भय रहता है... घर में भेदी हो तो लंका ढह जाना तय रहता है।।       विनोद विद्रोही

मां धरती है तो पिता आकाश है....

मां धरती है तो पिता आकाश है, मां सवेरा है तो पिता प्रकाश है। मां उम्मीद है तो पिता विश्वास है, मां प्यार है तो पिता एहसास है। ये वो रिश्ता है, जो जगत में सबसे खास है, खुशनसीब हैं वो जिनके पिता उनके पास हैं। विनोद विद्रोही

क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है.....

क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है, ऐ मेरे मालिक तूने बेटी बनाकर, क्यों कर दिया इतना बड़ा पाप है, क्या तू  नहीं जानता, इंसानों की इस बस्ती में शैतानों के भी बाप हैं। कहीं निर्भया ने तोड़ा दम है, तो कहीं नन्ही सी गुड़िया मांगे इंसाफ है, मत करो ऐसे कर्म जो इंसानियत के खिलाफ है, क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है।। अरे ओ वहशी दरिंदे क्या तुझे जरा भी लाज नहीं आई, क्या नहीं कांपी तेरी रूह, क्या तेरी नज़रें नहीं शर्माई। अरे कैसे भूल गया, तू भी तो किसी मां की गोद में खेला था, तूने भी तो किसी बहना से थी राखी बंधाई, फिर क्यों तार-तार है इंसानियत, क्यों शर्मसार हुई ये खुदाई। अरे तेरी इस हरकत से ये धरती तक गई कांप है, क्या सचमुच इस देश में बेटी होना अभिशाप है।। लटका दो सूली पर कर दो सरकलम, सजा दो ऐसी इन दरिंदों को कि याद रखें जन्मों जन्म। ताकि फिर ना किसी बेटी का दामन ना हो दागदार, फिर ना किसी गुडि़या की अस्मत लुटे सरे बाजार। अरे बेटियों से ही ये दुनिया है, बेटी से ही हम और आप हैं, फिर क्यों इस देश में बेटी होना अभिशाप है। विनोद विद्रोही

कैसे-कैसे सियासी मोड़ लेते हो,

कैसे-कैसे सियासी मोड़ लेते हो, वोट के लिए सबकुछ जोड़-तोड़ लेते हो। हर अच्छे काम का आगे आकर होड़ लेते हो, जब होने लगता है खुलासा तु्म्हारी कारगुजारी का, तुरंत जाति वाला चोला ओढ़ लेते हो।। विनोद विद्रोही

ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को...

ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को, जब मिटाया गया सिंदूर, उतारे गये मां की चूड़ी-कंगन को, उसका सबकुछ छीन गया मां ये भांप गई थी, मां के रूदन से धरती तक कांप गई थी। हे मेरे मालिक ये कैसा कहर तूने हमपर बरपाया था, छाती फट गई थी कलेजा हाथ में आया था। जीवन ने पहली बार ऐसा समय दिखाया था, दिन के उजाले में भी अंधेरा सा छाया था। घर के आंगन में भारी भीड़ का भरमाया था, जब पिता का पार्थिव शरीर अस्पताल से घर आया था। कैसे बताऊं कैसा वो सैलाब था, ऐसा लगता घर नहीं, जैसे कोई आंसूओं को तलाब था।। स्तब्ध खड़ा देख रहा था मैं एक अशोभनीय परिवर्तन को, ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को।। पिता आज नहीं, उनको गए सालों बीत गए, आखों के ये आंसू आंखों में ही सूख गए। लेकिन घर आज भी जैसे चलता था, वैसे ही चलता है, सबसे पहले खाना आज भी पिता के लिए ही निकलता है। मां की ये मासूमियत मुझे खूब भाती, पिता की तस्वीर के रोज खाने का भोग लगाती है। आज भी़ महसूस करता हूं मैं उस आवाज़ को, उस कंपन को, ताउम्र नहीं भुला सकता मैं मां के उस क्रंदन को। विनोद विद्रोही

जिंदगी इसी का नाम है, कर लो जो काम है...

दोस्तों कल चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ चौथे दिन का खेल देखकर जीवन का भी खेल समझ में आया। जीवन भी कुछ ऐसा ही है, कब इसका पासा पलट जाए कहा नहीं जा सकता है।  साथ ही करुण नायर की बैटिंग देखकर अभिनेता रणबीर सिंह की एड में रॉयल स्टैग की टैग लाइन याद भी आई, "इट्स योर लाइफ मेक इट लार्ज"। दोस्तों करुण नायर की चौथे दिन के खेल की बैटिंग से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सोचिए कल जब सुबह के सत्र में करुण बैटिंग करने उतरे थे तब वो क्या थे और शाम होते-होते क्या बन गए। कल सुबह तक जिस करुण को भारत में भी कुछ क्रिकेट प्रेमी ही शायद जानते थे, शाम होते-होते पूरा विश्व करुण नायर से रुबरू हो चुका था। इसे ही कहते हैं जिंदगी, जब ये मेहरबान होती है तो स्टार बनते देर नहीं लगती है। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में इंसान की लगन, मेहनत और सबसे अहम भाग्य की भी बड़ी भूमिका होती है। क्योंकि भाग्य भी उनका ही साथ देता है जिनमें कुछ करने का जज्बा होता है, कुछ कर गुजरने की चाह होती है। दोस्तों यहां करुण नायर की बात करके ये समझाना चाहता हूं, व्यक्ति का जीवन भी कुछ ऐसा ही है, कब इसमें तब्दीली आ जाए कहा नहीं जा सकता

भारत मां के ऐसे लालों को गद्दार बताते हो।।

विरोध के इन सुरों को अधिकार बताते हो, बांटकर भी नफरत खुद को वफादार बताते हो। स्वार्थ के लिए जाने किन-किन चीजों को स्वीकार बताते हो, आतंकी के परिवारों को भी मदद का हकदार बताते हो। फांसी के फंदे पर झूल गए जो देश की खातिर, भारत  मां के ऐसे लालों को तुम गद्दार बताते हो।। विनोद विद्रोही

क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है...

आतंकियों के सर नया फितूर दिखाई देता है, सेना पर हमले का नया दस्तूर दिखाई देता है। जख़्म पुराना ये कोई नासूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। आंतक रहित राष्ट्र का सपना चूर दिखाई देता है, हाफिज जैसों के चेहरों पर नूर दिखाई देता है। आतंकी राहों पर, मील का पत्थर दूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। उनको क्या समझाने चले हो, जिनका मन काला है, अलगाववाद की बुद्धि पर आतंक का ताला है। वो भूखे बच्चों के मुंह से छीन रहा निवाला है, सिर्फ एक सर्जिकल  से कुछ नहीं होने वाला है। आतंक से ना लड़ पाने में अपना ही कसूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। सीखो कुछ अमरीका के मापदंडों से, कैसे लड़ते हैं आतंक से, अपने ही हथकंडों से, कब तुम चौंधियाओगे खूनी इन तरंगों से, अब तो ले लो बदला तुम देश के इन जयचंदों से। अपने ही घर में कायरता का शुरूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। विनोद विद्रोही

अब तो इस्तीफा ले लो तुम रेलवे के गुनहगारों से....

कब तक बूढ़ी पटरियों पर मौत की रेल चलती रहेगी...आखिर कब तक बेबस जनता यूँ ही हाथ मलती रहेगी।                ये आवाज़ हैं विद्रोही की देश की सरकारों से....कब तक भागोगे तुम रेल  हादसों पर किनारों से...लाचार जनता देख रही तुम्हारी ओर धिक्कारों से....अब तो इस्तीफा ले लो तुम रेलवे के गुनहगारों से॥                                                    विनोद विद्रोही

क्या भर गया है पानी भुजदंडों में.....

बांटना चाहते हैं वो अखंड राष्ट्र को खंडों में, कायरता झलक रही है, जिनके हथकंडों में। अस्तित्तव टिका है जिसका काली कमाई के चंदों में, हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में। देश का बचपन ले रहा सिसकियां बारूदी बौछारों में, भूख यहां पेट बांध के सो जाती है किनारों में। हर दिन अपमानित होता तिरंगा देशद्रोह के नारों में, शिक्षा के मंदिर जल रहे हैं, नफरती अंगारों में। सिर्फ बर्बादी की तस्वीर दिखती है इन पाखंड़ों में, हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में। सन्नाटा पसरा रहता है, लाल चौक जैसे चौराहों में, ज़िंदगी लाचार खड़ी है, मौत की पनाहों में। कांटें बोए हुए हैं इन कश्मीरी राहों में, लोकतंत्र दम तोड़ रहा अलगाववाद की बांहों में। अरे इनका कोई विश्वास नहीं है शांति-संबंधों में, हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में। विनोद विद्रोही

विरोध के ये सुर, नीयत पर सवाल!

500-1000 रुपये के नोटों पर बंदी के बाद जिस तरह से कुछ स्वयंघोषित तर्कशास्त्रियों ने हाहाकार मचाया है उससे काफी हैरान हूं और उतना ही ज्यादा अंर्तमन से दुखी भी हूं। खैर कुछ मुट्ठी भर लोगों के उद्देशीय और निजी विरोध से ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि देश, सरकार के इस फैसले से साथ खड़ा है।  बिना तथ्यों को जाने, बिना समझें कुछ स्वार्थी लोग सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। ये ठीक उसी तरह है जैसे कहा जाता है ना अधूरा ज्ञान ज्यादा खतरनाक होता है, नोट बंदी पर अधूरे ज्ञान वाले मुझे कुकुरमुत्ते की फसल की तरह दिखाई दे रहे हैं। ये लोग सरकार का कोसने में लगे हुए हैं, कैसे भी करके कहीं से भी लूप होल्स खोज रहे हैं कि आखिर कैसे सरकार के इस फैसले को गलत साबित करें। जितना प्रयास वह लूप होल्स खोजने में कर रहे हैं, उससे कम प्रयास उन्हें बैंकों की लाइन में लगकर अपनी रोजमर्रा के खर्च के लिए पैसे निकालने के लिए लगेंगे। लेकिन नहीं हम यदि ऐसा कर लेंगे को मौजूदा सरकार को कोसने की कसमें जो खाई हैं वह टूट जाएंगी। विरोध करने वाले शायद ये भूल रहे हैं कि यदि एक उंगली यदि वह दूसरे पर उठा रहे हैं तो बाकी की चार उंगलि

कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है....

वाह रे राजनीति तेरी भी क्या माया है, तेरी हरकतों से विद्रोही शर्माया है.. कहीं देश का बचपन भूख से मर जाता है, तो कहीं आत्महत्या करने वाला भी शहीद कहलाता है। ये सोचकर मेरे मन भर आता है, कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है। देश का ये सिस्टम मेरे समझ में नहीं आता है, कैसा ये दिखता है और क्या ये दिखाता है। सीने पर गोली खाने वाले की कीमत 10 लाख लगाता है, जबकि जहर खाकर मरने वाला 1 करोड़ पा जाता है। इन बेशर्मों का सिर्फ और सिर्फ वोट से  नाता है, कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है। आत्महत्या करने वाला भी यदि शहीद का तमगा पाएगा, सीमा पर जान गंवानेवाला आखिर क्या कहलाया जाएगा। शहीदों की चिंताओं पर रोटी सेकनेवाले, क्या जानों शहादत क्या होती है। तुम जैसों से ही मेरी भारत मां सौ-सौ आंसू रोती है। तुम्हारी करतूतों से खून मेरा खौल जाता है, कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है। विनोद विद्रोही

देश कभी माफ नहीं करेगा ऐसे जयचंदों को...

अरे कोई तो समझाए इन मतिमंदों को, दे रहे समर्थन आतंकी खूनी दरिंदों को। सब्र का इम्तिहान लेते तोड़ रहे अनुबंधों को देश कभी माफ नहीं करेगा ऐसे जयचंदों को। भला कौन रोक पाया है आसमानी परिंदों को, जकड़ लो गर्दन खींच दो अब इन फंदों को। लगा दो आग, फूंक दो इन दिखावी संबंधों को, देश कभी माफ नहीं करेगा ऐसे जयचंदों को। सब जानते हैं, तुम्हारे गोरखधंधों को, स्वार्थ की रोटी सेकते, झूठ के पुलिंदों को। अब रोक ना पाओगे जज्बाती बुलंदों को, लहर रहा है तिरंगा, बजने दो मां भारती के छंदों को, देश कभी माफ नहीं करेगा ऐसे जयचंदों को। विनोद यादव

दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है।

देश पर उठने वाली हर आँखें हमने फोड़ी है, दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है।   याद करेगा तू सदियों तक ऐसी छाप छोड़ी है, नेस्तानाबूत हो जाएगा तू, बस बची कसर थोड़ी है। वो चट्टान हैं हम जिसके आगे तू कौड़ी है, दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है। अपने किए पर एक दिन तू खुद शर्माएगा, आस्तीन का सांप सदा यूं ही कुचला जाएगा। कांटे बोने वाला भला फूल कहां से लाएगा, दिन दूर नहीं जब लाहौर में तिरंगा लहराएगा। देश प्रेम की गाथा में नई पंक्ति हमने जोड़ी है, दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है। तेरी करतूतों का तेरी ही जुंबा में जवाब दिया है, कभी ना होगा पूरा कश्मीर का ऐसा ख्वाब दिया है। फंदा तेरी गर्दन के लिए अब हमने नाप दिया है, तेरे दिए जख़्मों का सूत समेत हिसाब दिया है। गर्व से छाती आज सचमुच 56 इंच चौड़ी है. दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है। विनोद यादव 

भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को...

जवानों की शहादत पर कैसे चुप रहा जाऊं मैं, मैं दिल्ली नहीं सबकुछ जान के भी मौन हो जाऊं मैं। बनकर चट्टान दुश्मानों से मैं टकरा जाऊंगा, सीने पर जख्म देने वालों को मौत की नींद सुलाऊंगा। दे दो बंदूक अब मेरे हाथों में मैं जाऊंगा लड़ने को, भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को। दिल्ली तेरे हाथों में वक्त चूंड़ियां पहनाएगा, तेरी कायरता पर इतिहास का सर शर्म से झुक जाएगा। सीमा पर खून बहे और दिल्ली तू मौन रहे, ऐसे में तू ही बता असली अपराधी कौन रहे। बुजदिलों के हाथ कांपते हैं कुछ भी करने को, भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को। दुर्योधन तबाही मचा रहा कश्मीरी क्यारों में। कृष्ण की नीतियां फेल हो रही इन बारूदी बौछारों में। अर्जुन का गांडिव अचेत पड़ा है, लाशों के अम्बारों में, भीम बेचारा लाचार खड़ा है सीमा के गलियारों में। लेकिन समंदर को आंख दिखाते, समझा दो इन झरनों को, भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को, दे दो बंदूक अब मेरे हाथों में मैं जाऊंगा लड़ने को। विनोद विद्रोही 

मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा

मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा, छू लूं कितनी भी बुलंदियां, तुझसे दू कहां जाऊंगा। मां यहां परदेस में तेरी हर बात याद आती है, याद कर तेरी बातें, अक्सर आंखें भर जाती हैं। लौटकर आऊंगा तो हर हाल तुझको सुनाऊंगा, मां तेरे उपकार कभी ना भूल पाऊंगा। हजारों दुख सहकर तूने है मुझे पाला, खुद भूखी रहकर मुझको दिया निवाला। जब भी कदम डगमगाए, मां तूने ही संभाला, तेरे आर्शीवादों ने मुझे हर मुश्किल से निकाला। मां तेरी ममता का कर्ज कैसे मैं चुकाऊंगा, मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा। मां याद आते हैं वो बचपन के दिन सुहाने, दिल में इस कदर बसे हैं, कभी होते नहीं पुराने। अपनी जरूरतों को मारकर लाती थी तू खिलौने, जब तक खा ना लूं, कभी देती नहीं थी सोने। अब तो यहां कई रातें बिना खाए बित जाती हैं, मायूस घर की रसोई मुझे हर रोज बुलाती है। मां क्या कभी, हर निवाला फिर से तेरे हाथों से खा पाऊंगा, मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा। वो पापा की डांट पर दौड़कर मुझे आंचल में छुपाना, छींक भी आ जाए तो वो तेरा घबरा जाना। लगाकर मेरे माथे पर काला टीका, मुझे हर नजर से बचाना, बहुत याद आता है मां, वो गुजरा हुआ जमाना। मां कसम

संभल जा ऐ पाक, वर्ना खौल उठेगा खून हिंदु्स्तानी

उसकी नापाक हरकतों से होती हर वक्त   परेशानी, कितना भी समझाओ उसको, वो करता जाता मनमानी। उसकी दोगुली बातों पर मुझको होती बड़ी हैरानी, अरे हमने गर घूर के भी देखा, तो मांगेगा तू पानी,   संभल जा ऐ पाक वर्ना खौल उठेगा खून हिन्दुस्तानी। छोड़ दे अब ये दरिंदगी, बंद कर अब तू शैतानी, अमन के बदले घोंपे पीठ में खंजर , ऐसा पड़ोसी तू बेईमानी, सरहद पर काटे सिपाहियों के सिर , है कोई राक्षस तू हैवानी । भूले नहीं हैं, ना भूलेंगे दी है हमने जो कुर्बानी , संभल जा ऐ पाक , वर्ना खौल उठेगा खून हिन्दुस्तानी। ना ले इम्तिहान हमारे सब्र का ,   ना बन तू इतना अभिमानी, गर उठा ली हमने भी बंदूक , शर्माएगा होने पर तू पाकिस्तानी। मत भूल 71 में तू हारा था , कारगिल में तुझको दौड़ा के मारा था। भीख में दिए थे 65 करोड़ , जब हुआ बंटवारा था। एक दिन खुद में हो जाएगा तू दफन ,   छोड़ दे अब ये कारसतानी , संभल जा ऐ पाक , वर्ना खौल उठेगा खून हिन्दुस्तानी। कश्मीर का तुझको लालच , चीन के दम पर भरता तू दम , तेरी आंखों में जेहाद , लेकिन नीयत में आतंकवाद पनपता हरदम। तेरे नापाक मंसूबे

एक खत अमिताभ बच्चन जी के नाम....

सदी के महानायक माननीय श्री अमिताभ बच्चन जी आपने हाल ही में अपनी नातिन और पोती को संबोधित करते हुए देश की हर बेटी के नाम एक खत लिखा है। आपके इस खत से काफी हद तक सहमत हुआ जा सकता है। एक दादा और नाना होने के नाते जो चिंता आपने खत में व्यक्त की है उसके मर्म को मैं समझ सकता हूं। शायद वर्तमान की समाजिक व्यवस्था और आबोहवा ने आपको ये खत लिखने पर मजबूर किया हो। एक बेहद सुंदर और प्रेरणादायक सलाह   आपने खत के माध्मम से देश की तमाम बेटियों को दी है इसमें कोई दो राय नहीं है। साथ ही आपके इस खत को देश की हर बेटी को पढ़ना चाहिए और ये खत देश की तमाम बेटियों को अपना मुस्तबिंद खुद लिखने में मील का पत्थर साबित हो सकता है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। किंतु मेरे बच्चन जी मेरे निजी विचार आपके इस खत से थोड़ा अहसमत होने पर मजबूर कर रहे हैं। खत के माध्यम से देश की तमाम बेटियों और महिलाओं को आपने एक बहुत अच्छा संदेश दिया है। लेकिन मुझे लगता है बेटियों को संदेश देने के साथ-साथ आपने कहीं ना कहीं समाज पर एक कुटाराघात भी किया है। आपके इस खत से ऐसा प्रतीत होता है कि समाज में अब भी ढेरों बुराईयां हैं,

हां कश्मीर हूं मैं......

दोस्तों वर्तमान समय में कश्मीर में जो हो रहा है या फिर जो दशकों से होता चला आ रहा है वह सचमुच बहुत पीड़ादायक है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन एक लेखक, एक विचारक के तौर पर कश्मीर को लेकर मेरे भीतर जो संवेदना उत्पन्न होती है उसे कुछ पंक्तियों के साथ आपसे साझा कर रहा हूं, और मेरा दावा है ये पंक्तियां आपको भी झकझोर के रख देंगी..... हां कश्मीर हूं मैं...... सर पर सजाए मुकुट जैसे हो कोई राजा, लेकिन फकीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं..... मेरी आबो हवा में हर कोई खो जाता, शायद तभी मैं धरती का स्वर्ग कहलाता, लेकिन सच कहूं तो फूटी तकदीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं........ मौसम यहां का जितना सर्द है, उससे कहीं ज्यादा दफन मेरे सीने में दर्द है, देखकर अपनी ये दुर्दशा, आंखों से टपकाता नीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं........ शायद मैं हूं कोई खूबसूरत महबूबा, हर कोई मुझको पाने में डूबा, ऐसा लगता है जैसे द्रोपदी का चीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं..... ये कहता मैं उसका हूं, वो कहता मैं उसका हूं, कोई तो बताए आखिर मैं किसका ह