क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है.....
क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है,
ऐ मेरे मालिक तूने बेटी बनाकर, क्यों कर दिया इतना बड़ा पाप है,
क्या तू नहीं जानता, इंसानों की इस बस्ती में शैतानों के भी बाप हैं।
कहीं निर्भया ने तोड़ा दम है, तो कहीं नन्ही सी गुड़िया मांगे इंसाफ है,
मत करो ऐसे कर्म जो इंसानियत के खिलाफ है,
क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है।।
अरे ओ वहशी दरिंदे क्या तुझे जरा भी लाज नहीं आई,
क्या नहीं कांपी तेरी रूह, क्या तेरी नज़रें नहीं शर्माई।
अरे कैसे भूल गया, तू भी तो किसी मां की गोद में खेला था,
तूने भी तो किसी बहना से थी राखी बंधाई,
फिर क्यों तार-तार है इंसानियत, क्यों शर्मसार हुई ये खुदाई।
अरे तेरी इस हरकत से ये धरती तक गई कांप है,
क्या सचमुच इस देश में बेटी होना अभिशाप है।।
लटका दो सूली पर कर दो सरकलम,
सजा दो ऐसी इन दरिंदों को कि याद रखें जन्मों जन्म।
ताकि फिर ना किसी बेटी का दामन ना हो दागदार,
फिर ना किसी गुडि़या की अस्मत लुटे सरे बाजार।
अरे बेटियों से ही ये दुनिया है, बेटी से ही हम और आप हैं,
फिर क्यों इस देश में बेटी होना अभिशाप है।
विनोद विद्रोही
ऐ मेरे मालिक तूने बेटी बनाकर, क्यों कर दिया इतना बड़ा पाप है,
क्या तू नहीं जानता, इंसानों की इस बस्ती में शैतानों के भी बाप हैं।
कहीं निर्भया ने तोड़ा दम है, तो कहीं नन्ही सी गुड़िया मांगे इंसाफ है,
मत करो ऐसे कर्म जो इंसानियत के खिलाफ है,
क्या इस देश में बेटी होना अभिशाप है।।
अरे ओ वहशी दरिंदे क्या तुझे जरा भी लाज नहीं आई,
क्या नहीं कांपी तेरी रूह, क्या तेरी नज़रें नहीं शर्माई।
अरे कैसे भूल गया, तू भी तो किसी मां की गोद में खेला था,
तूने भी तो किसी बहना से थी राखी बंधाई,
फिर क्यों तार-तार है इंसानियत, क्यों शर्मसार हुई ये खुदाई।
अरे तेरी इस हरकत से ये धरती तक गई कांप है,
क्या सचमुच इस देश में बेटी होना अभिशाप है।।
लटका दो सूली पर कर दो सरकलम,
सजा दो ऐसी इन दरिंदों को कि याद रखें जन्मों जन्म।
ताकि फिर ना किसी बेटी का दामन ना हो दागदार,
फिर ना किसी गुडि़या की अस्मत लुटे सरे बाजार।
अरे बेटियों से ही ये दुनिया है, बेटी से ही हम और आप हैं,
फिर क्यों इस देश में बेटी होना अभिशाप है।
विनोद विद्रोही
Comments
Post a Comment