Posts

Showing posts from February, 2017

तुम क्या अमेरिका ग्रेट बनाओगे....

नहीं चहिये ये ये पद-प्रतिष्ठा, नहीं चहिये ये रुपया-पैसा। जहां प्रेम के मीठे बोल हो, सूखी ही सही पर शुकून की रोटी हो...देश चहिये हमें ऐसा। मेरे देश में नमक रोटी खाकर, ठंडा पानी पीकर भी चहेरे पर सदा मुस्कान रहती है...तुम्हारे यहां लाखों कमाकर भी सांसत में हमारी जान रहती है।। होंगे तुम दुनिया के कोई बड़े तानाशाह...लेकिन हमसे बड़ा नहीं है कोई बादशाह। माना विकसित हो, आज आपार धन-सम्पदा पर सवार हो...लेकिन सच कहूं तो तुम मनोरोगी हो किसी विकृति का शिकार हो।। मत भूलो वो उतनी ही ऊपर से गिरा है, जितना ऊंचा हुआ है...और घमंड का सिर एक दिन ज़रूर नीचा हुआ है। अरे तुम क्या फ़िर से अमेरिका को ग्रेट बनाओगे...हमारे पड़ोसी मुल्क की तरह एक दिन तुम भी कहीं के ना रह जाओगे।। बेशक छलनी कर दो तुम आज हमारा सीना...लेकिन याद रखना हमारी बुलंदियों के आगे एक दिन तुम्हें भी छूटेगा पसीना।। जय हिन्द,  विनोद विद्रोही

अभिव्यक्त करने वाले के हाथों में तिरंगा हो...

हे भोलेनाथ, शिवशंकर जगत त्रिपुरारी, सुन लो ये विनंती हमारी। अब समुंद्र नहीं, राष्ट्र मंथन करना होगा, देश में छुपे बैठे विषैलों का विष पान तु्म्हें करना होगा। हे त्रंब्यकेश्वर इतनी तुम कृपा दो, देशद्रोहियों, आंतकियों पर कहर अपना तुम बरपा दो।। आशीष दो सबको राष्ट्रप्रेम का,  तुम्हारी जटा से बहती देशप्रेम की गंगा हो, अभिव्यक्ति की आजादी हो, लेकिन अभिव्यक्त करने वाले के हाथों में तिरंगा हो।। विनोद विद्रोही

राम राज का सपना, एक सपना ही रह जाएगा...

गधे-घोड़ों से लेकर श्मशान तक जा पहुंचे, नेताओं के बयान दिवाली से रमजान तक जा पहुंचे। नहीं की बात किसी ने ऐसी जो इंसान से इंसान तक जा पहुंचे, कहां गायब हुई वो मिठास जो हर किसी की जबान तक जा पहुंचे। क्या राजनीति का सिर्फ यही पैमाना है, कैसे भी करके बस सत्ता हथियाना है। ऐसे में आम आदमी लगता फिर से छला जाएगा, राम राज का सपना, एक सपना ही रह जाएगा।। विनोद विद्रोही

देश के सरकारी अस्पतालों का कड़वा सच....

आज कुछ काम से सरकारी अस्पताल जाना हुआ, वहां का दर्श्य देखकर दिल से कुछ पंक्तियां निकली। कोई मतलब नहीं है तुम्हारे झूठे दिखावों और तर्क का, सरकारी अस्पताल जाते ही आज भी एहसास हो जाता है नर्क का। कागजों पर बनी विकासी योजनाओं से भले तुमने अपनी छवि को सुधारा है, लेकिन कभी एक चक्कर तो लगाओ सरकारी अस्पतालों का, मालुम पड़ेगा ये देश कितना बेचारा है। क्या डॉक्टर, क्या कॉम्पॉउंडर सब अपनी-अपनी से मस्त हैं, मरीज और उसके रिश्तेदार हैं कि हाथ जोड़-जोड़ के त्रस्त हैं। हर कोई यहां डूबा है सम्सयाओं के समंदर में, इन्हें नहीं मिलता कोई किनारा है.... सचमुच सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा है।। विनोद विद्रोही

भला किनारों पर कहां कोई देर तक ठहरता है...

मोहब्बतों के सारे खत वो नफरतों से जला गया, उसे जाना था आखिर वो चला गया। ना कोई गिला, ना शिकवा बस आंखों की पुतलियों में वो आंसूओं सा तैरता है, भला किनारों पर कहां कोई देर तक ठहरता है।। विनोद विद्रोही

जो आग तुमने लगाई थी, घर उसमें तुम्हारा भी जलने लगा है....

मुखौटा जो तुम लगाए बैठे थे अब वह उतरने लगा है, जो आग तुमने लगाई थी, घर उसमें तुम्हारा भी जलने लगा है। सरेआम तुम्हारे चरित्र का चीरहरण हो रहा है, जो विषधर तुमने पाले हैं उनके डंक का अब तुम्हें भी स्मरण हो रहा है। करो कुछ ऐसा की सारी दुनिया में सीधा प्रसारण हो जाए, लंका के हाथों की रावण दहन का एक नया उदाहरण हो जाए।। विनोद विद्रोही

बड़े-बड़े पहाड़ भी जाते हैं धाराशाही....

खामोश रहना बेहतर होता है जब हवा तु्म्हारे खिलाफ हो, लेकिन सवाल अस्तित्व का हो तो तूफानों से भी टकराने का माद्दा होना चाहिए। बड़े-बड़े पहाड़ भी जाते हैं धाराशाही, बस बुलंद तु्म्हारा इरादा होना चाहिए।। विनोद विद्रोही

उठ जिंदगी के हसीन लम्हो को तमाम कर दे...

उठ जिंदगी के हसीन लम्हों को तमाम कर दे, कदम बढ़ा ऐसे की हर सफलता को आम कर दे। मत सोच कहां रुकेगा काफिला-ए-मंजिल, खत्म हो गई है ज़मी तो सारा आसमां भी अपने नाम कर दे।। विनोद विद्रोही

ये देख उठती है पीड़ा मेरे हृदय के तारों से....

ये देख उठती है पीड़ा मेरे हृदय के तारों से, सारी घाटी पटी पड़ी है देशद्रोहियों और गद्दारों से।। दहशतगर्दों के ये आका तो नहीं बख्शे जाएंगे, लेकिन पहले आतंकियों के हमदर्द सूली पर टांगे जाएंगे।। विनोद विद्रोही

सेना पर पत्थर फेंकने वालों को भी मौत की नींद सुला दो....

बात कड़वी है पर कहना मजबूरी है, देश की हिफाजत के लिए ये कदम भी जरूरी है। बाद में देना जवाब तुम घाटी में गोलियों की आवाजों का, पहले कुछ इलाज करो कश्मीर के इन पत्थरबाजों का।। अरे देश के इन गद्दारों को भी ऐसी सजा दो, सेना पर पत्थर फेंकने वालों को भी मौत की नींद सुला दो।। विनोद विद्रोही

नहीं चाहता सदा ही जिक्र करता रहूं अंगारों का....

मेरा भी दिल कहता है लिखूं गीत प्रेम बहारों का, नहीं चाहता सदा ही जिक्र करता रहूं अंगारों का। लेकिन आतंक से हर रोज भारत मां सीना छलनी हुआ जाता है, तिरंगे में लिपटी जवानों की लाशें देखकर लहू मेरी आंखों से टपक आता है। तब मेरी कलम इस कदर तड़प जाती है, प्यार की भाषा छोड़ सिर्फ अंगारे बरसाती है।। विनोद विद्रोही

अब चुनाव का मतलब जाना है....

आज अचानक सामने से एक चुनाव प्रचार की गाड़ी गुजरी, गाड़ी को देखते ही कदम जोर उसके पीछे भागने को उठे, लेकिन उठते कदम वहीं रुक गए और याद आ गए दिन बचपन के, सावन की फुहारों की तरह बीते थे दिन वो लड़कपन के। क्या चुनाव, क्या नेता, क्या वोट कुछ भी नहीं जानते थे, हम तो बस प्रचार गाड़ी के पीछे दौड़कर पर्चे और बिल्ले मांगते थे। ना कांग्रेस, ना सपा, ना भाजपा से था कोई नाता, प्रचार गाड़ी से मिले बिल्ले कमीज पर लगाकर हम तो खुद बन जाते थे नेता।। प्रचार गाड़ी के पीछे भागना, पर्चे-बिल्ले मांगना, चुनावी गानों पर थिरकना था। हमारे लिए तो चुनाव का मतलब ही सिर्फ इतना था। वक्त के साथ हम बड़े हो गए, ना रही वो मस्ती, सामने कई सवाल खड़े हो गए। प्रचार गाड़ी तो आज भी वही है, पर उसे देखकर दिल में कोई हलचल नहीं है।। बचपन की वो मौज अब नहीं आती है, आज तो हर किसी का एक मजहब है, एक नेता है, एक पार्टी है। अब समझ आया है चुनाव क्या मतलब क्या होता है, इंसान को बांटने का ये एक जरिया होता है।। जब से उस चुनाव वाली प्रचार गाड़ी का सच जाना है, दिल यही कहता एक दिन फिर उसी बचपन में लौट जाना है।। विनोद व