नहीं चाहता सदा ही जिक्र करता रहूं अंगारों का....
मेरा भी दिल कहता है लिखूं गीत प्रेम बहारों का,
नहीं चाहता सदा ही जिक्र करता रहूं अंगारों का।
लेकिन आतंक से हर रोज भारत मां सीना छलनी हुआ जाता है,
तिरंगे में लिपटी जवानों की लाशें देखकर लहू मेरी आंखों से टपक आता है।
तब मेरी कलम इस कदर तड़प जाती है,
प्यार की भाषा छोड़ सिर्फ अंगारे बरसाती है।।
विनोद विद्रोही
नहीं चाहता सदा ही जिक्र करता रहूं अंगारों का।
लेकिन आतंक से हर रोज भारत मां सीना छलनी हुआ जाता है,
तिरंगे में लिपटी जवानों की लाशें देखकर लहू मेरी आंखों से टपक आता है।
तब मेरी कलम इस कदर तड़प जाती है,
प्यार की भाषा छोड़ सिर्फ अंगारे बरसाती है।।
विनोद विद्रोही
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