जो आग तुमने लगाई थी, घर उसमें तुम्हारा भी जलने लगा है....

मुखौटा जो तुम लगाए बैठे थे अब वह उतरने लगा है,
जो आग तुमने लगाई थी, घर उसमें तुम्हारा भी जलने लगा है।
सरेआम तुम्हारे चरित्र का चीरहरण हो रहा है,
जो विषधर तुमने पाले हैं उनके डंक का अब तुम्हें भी स्मरण हो रहा है।
करो कुछ ऐसा की सारी दुनिया में सीधा प्रसारण हो जाए,
लंका के हाथों की रावण दहन का एक नया उदाहरण हो जाए।।
विनोद विद्रोही

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