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Showing posts from March, 2017

वन्दे मातरम इसका नहीं कोई धर्म....

दुख सिर्फ़ इतना है, नहीं और कोई गुरेज है, अमन की इस फुलवारी में ये कांटों की सेज है।। लगता है कुछ लोगों के डीएनए में रह गये अंग्रेज हैं। तब ही तो उन्हें वन्दे मातरम, और मां भारती के जयकारे से परहेज़ है।। बेशक वन्दे मातरम गाना या ना गाना, एक निजी अधिकार है। वो बात अलग है इस देश के तुम बाशिन्दे हो, इस पर मुझे धिक्कार है।। विनोद विद्रोही

अपने लहू से सींचा है इस घाटी को...

लहू के एक-एक क़तरे से सींचा है, हमने कश्मीर की इस घाटी को। गर्दन धड़ से अलग कर देंगे, जो नापाक हाथ लगे इस माटी को।। अरे जड़ से उखाड़ फेंको पेड़ ये बबूलों के, ये परिणाम हैं देश के कुछ आला नेताओं के भूलों के।। विनोद विद्रोही

ये घाटी आज फ़िर वही जूनून मांग रही है...

इंसानियत चीख-चीख कर सुकून मांग रही है। कश्मीर की धरती है की रोज-रोज खून मांग रही है।। जिस वतनपरस्ती से आजाद कराया था ये मुल्क, ये घाटी आज फ़िर वही जूनून मांग रही है।। विनोद विद्रोही

जिसके समर्थन में खड़ें हो, वो बातें सब जहरीली हैं....

दिल पत्थर, हाथों में पत्थर, ये राहें भी पथरीली हैं, जिसके समर्थन में खड़ें हो, वो बातें सब जहरीली हैं।। अपने होकर भी घोंपा है खंजर तुमने पीठ में, सिर्फ इसीलिए आज आंखें गीली हैं।। विनोद विद्रोही

दुनिया दुश्मन बनी बैठी है जान की...

मत खरीदो अगर जरूरत ना हो कीमती सामान की, दुनिया दुश्मन बनी बैठी है जान की। सच कहूं, लोगों की नजरों में मैं चुभने लगा हूं, जब से बात की है ईमान की।। विनोद विद्रोही

बेशर्मी की इंतेहा देखो, फिर भी हम जिए जा रहे हैं...

बात में कोई दम नहीं फिर भी किए जा रहे हैं। आखिर कौन सा गम है जो इतनी पिए जा रहे हैं।। उनसे कहा था मत जाओ छोड़कर मर जाएंगे, बेशर्मी की इंतेहा देखो, फिर भी हम जिए जा रहे हैं।। विनोद विद्रोही

ऐ जिंदगी तू आज बिखर भी जाए तो क्या नुकसान है...

ऐ जिंदगी जब तू चंद दिनों की मेहमान है, तो आज बिखर भी जाए तो क्या नुकसान है।। निकल पड़ा हूं अकेले ही दुश्मनों से लोहा लेने, जीत पक्की है, क्योंकि अब अपनी भी हथेली पे जान है।। मैं यूं ही मुक्सुराता रहता हूं मुसीबतों के आगे, देखकर मेरा ये सब्र आईना भी हैरान है।। और कहीं दोनों दिखें तो मुझे भी बतला देना, मैं भी देखूंगा, वैसे भी बहुत कम बचे बाघ और इंसान है। जिनको मिला था वो लौटा रहे थे, अपने नसीब में कहां ये सम्मान है। जो तुमने लौटाया वो तो प्यार था अवाम का, मेरी नजर में तो ये सम्मान का अपमान है।। काम निकलवाना है तो फाइलों के साथ, नोटों का वजन भी रखना सिखो साहब, इस सिस्टम का ऐसा ही चलन है, और तुम कहते हो बेईमान है।। इससे पहले तो यहां सब ठीक था, बीती रात एक नेता का भाषण क्या हुआ, आज पूरा इलाका लहूलुहान है।। ऐ जिंदगी जब तू चंद दिनों की मेहमान है, तो आज बिखर भी जाए तो क्या नुकसान है।। विनोद विद्रोही

दर्जा दिया है तुम्हें भगवान का...

कुछ तो रखो ख्याल अपने ईमान का, दर्जा दिया है तुम्हें भगनाव का। माना शिकार हुए हो तुम हिंसा का, लेकिन मत करो सौदा किसी बेबस की जान का। तुम्हारी ही राह पर सेना का जवान भी चलने लग जाएगा, उस दिन ये सारा मुल्क कायर कहलाएगा।। विनोद विद्रोही

देश की अखंडता का पाठ कैसे तुम भूल गए...

बहुत आसां है देश के खिलाफ नारे लगाना, तुम क्या जानों होता क्या है वतन के लिए मर जाना। देश की अखंडता का पाठ कैसे तुम भूल गए। जबकि तुम्हारी खातिक भारत मां के लाल, भरी जवानी फांसी के फंदे पर झूल गए।। विनोद विद्रोही

धर्म की आग से इंसानियत के मकां जला रहे हो...

असल मसला क्या है हम समझ नहीं पा रहे हैं। सुना है कुछ लोग मस्जिद तो कुछ लोग मंदिर बनवा रहे हैं।। सबके दिलों में उनके रहनुमा बसते हैं, देखकर करतूतें हमारी हमपर वो हंसते हैं। जिसके दम से ये धरती ये सारा संसार है, उसकी छत के लिए छिड़ी इतनी बड़ी रार है। चलो माना तुम्हारा भी और तुम्हारा भी इरादा नेक है, लेकिन तुम ही तो कहते थे ना, सबका मालिक एक है।। तो फिर खींची ये तलवारे क्यों हैं, तुम्हारे निशाने पर कभी कलश तो कभी मिनारें क्यों हैं। सच कहूं, तुम सब अपनी-अपनी दुकां चला रहे हो, धर्म की आग से इंसानियत के मकां जला रहे हो।। विनोद विद्रोही

कौन से वो लम्हे होंगे जो तुम्हें सताते थे...

प्रिय मित्र राहुल तु्म्हें दिल से श्रद्धांजलि, ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे... कौन से होंगे वो लम्हे जो तुम्हें सताते थे, दिल की बात क्यों किसी को नहीं बताते थे। मुसीबतों से आखिर क्यों तुम लड़ें नहीं, कौन थे वो जो हुए तुम्हारे साथ खड़ें नही। एक जुझारू योद्धा यदि ऐसे हथियार रख जाएगा, तो चुनौती रूपी इन दुश्मनों से कौन लोहा ले पाएगा।। विनोद विद्रोही

खड़ी क्यों है, गिरा दो मज़हब की ये जो दीवारें हैं...

इंसानियत चीख-चीख कर अक्सर ये पुकारे है।  खड़ी क्यों है, गिरा दो मज़हब की जो ये दीवारें हैं।  ये मज़हब तो देन नहीं हमारे दाता का, आपस में ही खींच लो तलवारें, ऐसा तो फ़रमान नहीं किसी विधाता का। तो फ़िर बढ़ रहा धर्म का इतना मसला क्यों है। इंसान के  दिलों में प्यार की जगह भर रहा ये बारूद और असला क्यों है। ऐसा करके आखिर क्या पाओगे, मिट्टी का ये शरीर है, एक दिन मिट्टी में मिल जाओगे। तो जितना बांट सको प्यार बांटते चलो। कम से कम दिलों मे तो जिंदा रह जाओगे।। विनोद विद्रोही नागपुर

दरबारों को आईना दिखाना कलम का अधिकार है...

दरबारों को आईना दिखाना कलम का अधिकार है, ना लिख पाये सच तो नहीं हमसे बड़ा कोई गद्दार है। मेरी कलम अधिकारों के लिए अक्सर लड़ जाती है, जरूरत पड़ने पर शब्द नहीं शोले बरसाती है।। विनोद विद्रोही

घोड़ों की घास चर गए गधे....

जो खुद के समझ रहे थे घोड़े सधे, उनकी घास चर गए गुजराती गधे। दो पंक्तियों की ये कथा बहुत कुछ बताती है, खुद पर गुमान करने वालों को आईना दिखाती है।। विनोद विद्रोही

कैसे इस कदर बेपरवाह हो जाते हो...

कैसे इस कदर बेपरवाह हो जाते हो...आखिर  किसके बहकावे में इतने गुमराह हो जाते हो। क्या खूब फर्ज निभाया है तुमने वफादारी का...जिस थाली में खाते हो उसी में छेद कर जाते हो।। तुममे में हम तो देखते थे  देश का मुस्तकबिल.....किसे पता था एक दिन बन जाओगे वतन के कातिल।। मजलूमों का खून बहाने वाले कभी  जन्नत के  हकदार नहीं बन पायेंगे......देश का सौदा करने वाले केवल देश के गद्दार कहलायेंगे।। विनोद विद्रोही

क्यों देश की नज़रों में दगाबाज बने हो...

क्यों देश की नज़रों में दगाबाज बने हुये हो...चंद कागज के टुकडों के लिये पत्थरबाज बने हुये हो।। अमन प्रेमी हम, मुरीद हैं स्वर कोकिला के...फ़िर क्यों तुम कौवों की आवाज़ बने हुये हो।। तुम्हें भड़काने वाले देश के लिये डायर बने हुये हैं....पत्थरबाजों के पीछे छुपनेवाले कायर बने हुये हैं। अरे उठो और पहचानो अपनी ताकत को..खत्म कर दो अलगाववाद और देशद्रोह जैसी आफत को।। कसम है तुमको कश्मीर की लूटी हुई जवानी की...दहशत के साये में सिसकती हिचकियों और आंखों में सूख चुके पानी की। कश्मीर नहीं, देश का मुकुट तुम्हें बचाना है...अलगाववाद  के खिलाफ तुम्हें जीना और मर जाना है।। जिस तुम सचमुच ऐसा कर जाओगे...मानों यकीं सच्चे वतन परस्त कहलाओगे। कलम विद्रोही की तुम्हारे सम्मान के गीत गायेगी...कश्मीर की ये धरती फ़िर से स्वर्ग बन जायेगी।। विनोद विद्रोही

सत्ता से सबका सिंहासन यूं ही डोलेगा...

अगर करोगे, तो सचमुच काम बोलेगा...वरना सत्ता से सबका सिंहासन यूं ही डोलेगा।  बैसाखियों के बल पर कोई बहुत देर तक खड़ा नहीं हो सकता...और कितने भी बड़े हो जाओ, लेकिन लोकतंत्र से कोई बड़ा नहीं हो सकता।। विनोद विद्रोही

खिस्याने के बाद ही क्यों बिल्ली खम्बा नोचती है....

कल तक जो कह रहे थे, सत्ता की कुल्फी पूरी तरह जमी नज़र आ रही है....आज उन्हें ही ईवीएम में कमी नज़र आ रही है।  कलम विद्रोही की अक्सर ये सोचती है....खिस्याने के बाद ही क्यों बिल्ली खम्बा नोचती है।। विनोद विद्रोही

क्या इसी व्यथा का नाम हिंदुस्तान होता है....

देखता हूं जब भीख मांगते बच्चों को चौराहों पर...कुंठित हो उठता हूं देश कि व्यवस्थाओं पर। जो देश का कल हैं उसका हाल आज ऐसा है...मत पूछो मजबूरियों का ये मायाजाल कैसा है।। ये हसीन सब्ज़बागों के सपने सब एक दिखावा लगता है..देश के बचपन के साथ ये एक छलावा लगता है। देख कर ये सब मुझे हकीक़त का भान होता है...सच बताओ, क्या इसी व्यथा का नाम हिन्दुस्तान होता है॥ विनोद विद्रोही

कुछ इस कदर फर्ज निभाया है हमने रहनुमाई का...

कुछ इस कदर फर्ज निभाया है हमने रहनुमाई का, किसी से जिक्र तक नहीं किया उनकी बेवफाई का। क्या ज़िक्र करें हम उपहार-ए-वफा का, हम तो सिर्फ सबब बनकर रह गए जग हंसाई का।। कुछ इस कदर फर्ज निभाया है रहनुमाई का... यूं तो गाजे-बाजों में हमेशा दिल का दर्द ही बढ़ाया है, लेकिन किसी की खातिर हमने मान रख लिया, गूंजती उस शहनाई का।। और अंधेरा होते ही ये साथ तो छूट ही जाना था, भरोसा जो कर बैठे थे परछाई का।। यूं तो लड़खड़ा के कई बार संभल चुका हूं, लेकिन इस बार गिर ना जाते तो करते भी क्या, हमें भी कहां अंदाजा था रास्ते की उस खाई का। वो चाहते थे इसीलिए डूब जाना हमने फर्ज समझा, वरना हमें अंदाजा था उस समंदर की गहराई का।। कुछ इस कदर फर्ज निभाया है हमने रहनुमाई का, किसी से जिक्र तक नहीं किया उनकी बेवफाई का। विनोद विद्रोही

कश्मीर के पत्थरबाजों को मेरी सलाह...

क्यों देश की नजरों में दगाबाज बने हुए हो, चंद कागज के टुकड़ों के लिए पत्थरबाज बने हुए हो। अमन प्रेमी हम, मुरीद हैं स्वर कोकिला के, फिर क्यों तुम कौवों की आवाज़ बने हुए हो।। तुम्हें भड़काने वाले डायर बने हुए हैं, पत्थरबाजों के लिए पीछे छुपकर कायर बने हुए हैं। अरे उठो और पहचानों अपनी ताकत को, खत्म कर दो अलगाववाद और देशद्रोह जैसी आफत को। कसम है तुमको कश्मीर की लुटती हुई जवानी की, दशहत के साये में सिसकती हिचकियों और आखों में सूख चुके पानी की। कश्मीर नहीं, देश का मुकुट तुम्हें बचाना है, अलगाववाद के खिलाफ जीना और मर जाना है।। जिस दिन तुम ऐसा कर जाओगे, मानों यकीन सच्चे वतन परस्त कहलाओगे। कलम विद्रोही की तुम्हारे सम्मान के गीत गायेगी, कश्मीर की ये धरती फिर से स्वर्ग बन जाएगी।। विनोद विद्रोही

कैसे इस कदर बेपरवाह हो जाते हो....

कैसे इस कदर बेपरवाह हो जाते हो...आखिर  किसके बहकावे में इतने गुमराह हो जाते हो। क्या खूब फर्ज निभाया है तुमने वफादारी का...जिस थाली में खाते हो उसी में छेद कर जाते हो।। तुममे में हम तो देखते थे  देश का मुस्तकबिल.....किसे पता था एक दिन बन जाओगे वतन के कातिल।। मजलूमों का खून बहाने वाले कभी  जन्नत के  हकदार नहीं बन पायेंगे......देश का सौदा करने वाले केवल देश के गद्दार कहलायेंगे।। विनोद विद्रोही

अभिव्यक्ति की आजादी से मुझे कोई बैर नहीं...

पहले आजादी मिली है, फिर ये अभिव्यक्ति मिली है, किसी की ठेकेदारी में नहीं ये राष्ट्रभक्ति मिली है। आज तुम्हारी जुबां को ये जो शक्ति मिली है, खून का कतरा-कतरा बहाकर गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति मिली है।। अभिव्यक्ति की आजादी से मुझे कोई बैर नहीं, लेकिन अभिव्यक्ति की आड़ में देश बांटने वालों की खैर नहीं। देश के होकर भी जो बोह रहे एक और बंटवारे की फसलें हैं, मेरी नज़रों में वो कोई और नहीं, जिन्ना की नस्लें हैं।। विनोद विद्रोही