क्या इसी व्यथा का नाम हिंदुस्तान होता है....

देखता हूं जब भीख मांगते बच्चों को चौराहों पर...कुंठित हो उठता हूं देश कि व्यवस्थाओं पर। जो देश का कल हैं उसका हाल आज ऐसा है...मत पूछो मजबूरियों का ये मायाजाल कैसा है।। ये हसीन सब्ज़बागों के सपने सब एक दिखावा लगता है..देश के बचपन के साथ ये एक छलावा लगता है। देख कर ये सब मुझे हकीक़त का भान होता है...सच बताओ, क्या इसी व्यथा का नाम हिन्दुस्तान होता है॥
विनोद विद्रोही

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