कुछ इस कदर फर्ज निभाया है हमने रहनुमाई का...

कुछ इस कदर फर्ज निभाया है हमने रहनुमाई का,
किसी से जिक्र तक नहीं किया उनकी बेवफाई का।
क्या ज़िक्र करें हम उपहार-ए-वफा का,
हम तो सिर्फ सबब बनकर रह गए जग हंसाई का।।

कुछ इस कदर फर्ज निभाया है रहनुमाई का...

यूं तो गाजे-बाजों में हमेशा दिल का दर्द ही बढ़ाया है,
लेकिन किसी की खातिर हमने मान रख लिया,
गूंजती उस शहनाई का।।
और अंधेरा होते ही ये साथ तो छूट ही जाना था,
भरोसा जो कर बैठे थे परछाई का।।

यूं तो लड़खड़ा के कई बार संभल चुका हूं,
लेकिन इस बार गिर ना जाते तो करते भी क्या,
हमें भी कहां अंदाजा था रास्ते की उस खाई का।
वो चाहते थे इसीलिए डूब जाना हमने फर्ज समझा,
वरना हमें अंदाजा था उस समंदर की गहराई का।।

कुछ इस कदर फर्ज निभाया है हमने रहनुमाई का,
किसी से जिक्र तक नहीं किया उनकी बेवफाई का।

विनोद विद्रोही

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