Posts

Showing posts from November, 2016

क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है...

आतंकियों के सर नया फितूर दिखाई देता है, सेना पर हमले का नया दस्तूर दिखाई देता है। जख़्म पुराना ये कोई नासूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। आंतक रहित राष्ट्र का सपना चूर दिखाई देता है, हाफिज जैसों के चेहरों पर नूर दिखाई देता है। आतंकी राहों पर, मील का पत्थर दूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। उनको क्या समझाने चले हो, जिनका मन काला है, अलगाववाद की बुद्धि पर आतंक का ताला है। वो भूखे बच्चों के मुंह से छीन रहा निवाला है, सिर्फ एक सर्जिकल  से कुछ नहीं होने वाला है। आतंक से ना लड़ पाने में अपना ही कसूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। सीखो कुछ अमरीका के मापदंडों से, कैसे लड़ते हैं आतंक से, अपने ही हथकंडों से, कब तुम चौंधियाओगे खूनी इन तरंगों से, अब तो ले लो बदला तुम देश के इन जयचंदों से। अपने ही घर में कायरता का शुरूर दिखाई देता है, क्यों आतंक के आगे देश मजबूर दिखाई देता है।। विनोद विद्रोही

अब तो इस्तीफा ले लो तुम रेलवे के गुनहगारों से....

कब तक बूढ़ी पटरियों पर मौत की रेल चलती रहेगी...आखिर कब तक बेबस जनता यूँ ही हाथ मलती रहेगी।                ये आवाज़ हैं विद्रोही की देश की सरकारों से....कब तक भागोगे तुम रेल  हादसों पर किनारों से...लाचार जनता देख रही तुम्हारी ओर धिक्कारों से....अब तो इस्तीफा ले लो तुम रेलवे के गुनहगारों से॥                                                    विनोद विद्रोही

क्या भर गया है पानी भुजदंडों में.....

बांटना चाहते हैं वो अखंड राष्ट्र को खंडों में, कायरता झलक रही है, जिनके हथकंडों में। अस्तित्तव टिका है जिसका काली कमाई के चंदों में, हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में। देश का बचपन ले रहा सिसकियां बारूदी बौछारों में, भूख यहां पेट बांध के सो जाती है किनारों में। हर दिन अपमानित होता तिरंगा देशद्रोह के नारों में, शिक्षा के मंदिर जल रहे हैं, नफरती अंगारों में। सिर्फ बर्बादी की तस्वीर दिखती है इन पाखंड़ों में, हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में। सन्नाटा पसरा रहता है, लाल चौक जैसे चौराहों में, ज़िंदगी लाचार खड़ी है, मौत की पनाहों में। कांटें बोए हुए हैं इन कश्मीरी राहों में, लोकतंत्र दम तोड़ रहा अलगाववाद की बांहों में। अरे इनका कोई विश्वास नहीं है शांति-संबंधों में, हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में। विनोद विद्रोही

विरोध के ये सुर, नीयत पर सवाल!

500-1000 रुपये के नोटों पर बंदी के बाद जिस तरह से कुछ स्वयंघोषित तर्कशास्त्रियों ने हाहाकार मचाया है उससे काफी हैरान हूं और उतना ही ज्यादा अंर्तमन से दुखी भी हूं। खैर कुछ मुट्ठी भर लोगों के उद्देशीय और निजी विरोध से ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि देश, सरकार के इस फैसले से साथ खड़ा है।  बिना तथ्यों को जाने, बिना समझें कुछ स्वार्थी लोग सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। ये ठीक उसी तरह है जैसे कहा जाता है ना अधूरा ज्ञान ज्यादा खतरनाक होता है, नोट बंदी पर अधूरे ज्ञान वाले मुझे कुकुरमुत्ते की फसल की तरह दिखाई दे रहे हैं। ये लोग सरकार का कोसने में लगे हुए हैं, कैसे भी करके कहीं से भी लूप होल्स खोज रहे हैं कि आखिर कैसे सरकार के इस फैसले को गलत साबित करें। जितना प्रयास वह लूप होल्स खोजने में कर रहे हैं, उससे कम प्रयास उन्हें बैंकों की लाइन में लगकर अपनी रोजमर्रा के खर्च के लिए पैसे निकालने के लिए लगेंगे। लेकिन नहीं हम यदि ऐसा कर लेंगे को मौजूदा सरकार को कोसने की कसमें जो खाई हैं वह टूट जाएंगी। विरोध करने वाले शायद ये भूल रहे हैं कि यदि एक उंगली यदि वह दूसरे पर उठा रहे हैं तो बाकी की चार उंगलि

कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है....

वाह रे राजनीति तेरी भी क्या माया है, तेरी हरकतों से विद्रोही शर्माया है.. कहीं देश का बचपन भूख से मर जाता है, तो कहीं आत्महत्या करने वाला भी शहीद कहलाता है। ये सोचकर मेरे मन भर आता है, कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है। देश का ये सिस्टम मेरे समझ में नहीं आता है, कैसा ये दिखता है और क्या ये दिखाता है। सीने पर गोली खाने वाले की कीमत 10 लाख लगाता है, जबकि जहर खाकर मरने वाला 1 करोड़ पा जाता है। इन बेशर्मों का सिर्फ और सिर्फ वोट से  नाता है, कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है। आत्महत्या करने वाला भी यदि शहीद का तमगा पाएगा, सीमा पर जान गंवानेवाला आखिर क्या कहलाया जाएगा। शहीदों की चिंताओं पर रोटी सेकनेवाले, क्या जानों शहादत क्या होती है। तुम जैसों से ही मेरी भारत मां सौ-सौ आंसू रोती है। तुम्हारी करतूतों से खून मेरा खौल जाता है, कैसे हाथों में मेरा भारत भाग्य विधाता है। विनोद विद्रोही