कहां खो गयीं वो चिट्ठियां...?
कहां खो गयीं वो चिट्ठियां: 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 कहां भूख कहां प्यास कहां खाना होता था। बड़ी कौतुहलता रहती थी जिस दिन चिट्ठी का आना होता था।। वो सुबह से डाकिये की राह तकते हुये कितने चौकन्ने रहते थे। हो भी क्यों ना, उसके हाथों में ही तो ग़म और खुशियों के पन्ने रहते थे।। एक ही चिट्ठी को दिन में दस बार पढ़ लेते थे। चिट्ठी में लिखे एक-एक शब्द अपने भीतर गढ़ लेते थे।। चिट्ठी का आना यूं लगता था जैसे कोई त्योहार है। एक छोटी सी चिट्ठी में मानो समाया सारा संसार है।। आज भी याद है...चिट्ठी पढ़वाते-पढ़वाते मां अक्सर सुध-बुध खो देती थी। चिट्ठी ख़त्म होने तक वो कइयों बार रो देती थी।। डाकिये से भी घर का रिश्ता बड़ा अजीब होता था। यूं तो था वो पराया, लेकिन सबके दिल के क़रीब होता था।। अब तो ना वो डाकिया रहा ना रहीं वो चिट्ठियां। फ़ेसबुक, वट्स एप के इस दौर में जाने कहां गुम गयीं वो संवेदनायें और वो सिसकियां।। विनोद विद्रोही 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 पसंद आए तो शेयर करें संपर्क सूत्र - 07276969415 नागपुर, Blog: vinodngp.blogspot.in Twitter@vinodvidrohi