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Showing posts from September, 2016

दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है।

देश पर उठने वाली हर आँखें हमने फोड़ी है, दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है।   याद करेगा तू सदियों तक ऐसी छाप छोड़ी है, नेस्तानाबूत हो जाएगा तू, बस बची कसर थोड़ी है। वो चट्टान हैं हम जिसके आगे तू कौड़ी है, दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है। अपने किए पर एक दिन तू खुद शर्माएगा, आस्तीन का सांप सदा यूं ही कुचला जाएगा। कांटे बोने वाला भला फूल कहां से लाएगा, दिन दूर नहीं जब लाहौर में तिरंगा लहराएगा। देश प्रेम की गाथा में नई पंक्ति हमने जोड़ी है, दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है। तेरी करतूतों का तेरी ही जुंबा में जवाब दिया है, कभी ना होगा पूरा कश्मीर का ऐसा ख्वाब दिया है। फंदा तेरी गर्दन के लिए अब हमने नाप दिया है, तेरे दिए जख़्मों का सूत समेत हिसाब दिया है। गर्व से छाती आज सचमुच 56 इंच चौड़ी है. दुश्मन के घर में घुसकर उसकी हड्डी तोड़ी है। विनोद यादव 

भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को...

जवानों की शहादत पर कैसे चुप रहा जाऊं मैं, मैं दिल्ली नहीं सबकुछ जान के भी मौन हो जाऊं मैं। बनकर चट्टान दुश्मानों से मैं टकरा जाऊंगा, सीने पर जख्म देने वालों को मौत की नींद सुलाऊंगा। दे दो बंदूक अब मेरे हाथों में मैं जाऊंगा लड़ने को, भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को। दिल्ली तेरे हाथों में वक्त चूंड़ियां पहनाएगा, तेरी कायरता पर इतिहास का सर शर्म से झुक जाएगा। सीमा पर खून बहे और दिल्ली तू मौन रहे, ऐसे में तू ही बता असली अपराधी कौन रहे। बुजदिलों के हाथ कांपते हैं कुछ भी करने को, भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को। दुर्योधन तबाही मचा रहा कश्मीरी क्यारों में। कृष्ण की नीतियां फेल हो रही इन बारूदी बौछारों में। अर्जुन का गांडिव अचेत पड़ा है, लाशों के अम्बारों में, भीम बेचारा लाचार खड़ा है सीमा के गलियारों में। लेकिन समंदर को आंख दिखाते, समझा दो इन झरनों को, भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को, दे दो बंदूक अब मेरे हाथों में मैं जाऊंगा लड़ने को। विनोद विद्रोही 

मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा

मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा, छू लूं कितनी भी बुलंदियां, तुझसे दू कहां जाऊंगा। मां यहां परदेस में तेरी हर बात याद आती है, याद कर तेरी बातें, अक्सर आंखें भर जाती हैं। लौटकर आऊंगा तो हर हाल तुझको सुनाऊंगा, मां तेरे उपकार कभी ना भूल पाऊंगा। हजारों दुख सहकर तूने है मुझे पाला, खुद भूखी रहकर मुझको दिया निवाला। जब भी कदम डगमगाए, मां तूने ही संभाला, तेरे आर्शीवादों ने मुझे हर मुश्किल से निकाला। मां तेरी ममता का कर्ज कैसे मैं चुकाऊंगा, मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा। मां याद आते हैं वो बचपन के दिन सुहाने, दिल में इस कदर बसे हैं, कभी होते नहीं पुराने। अपनी जरूरतों को मारकर लाती थी तू खिलौने, जब तक खा ना लूं, कभी देती नहीं थी सोने। अब तो यहां कई रातें बिना खाए बित जाती हैं, मायूस घर की रसोई मुझे हर रोज बुलाती है। मां क्या कभी, हर निवाला फिर से तेरे हाथों से खा पाऊंगा, मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा। वो पापा की डांट पर दौड़कर मुझे आंचल में छुपाना, छींक भी आ जाए तो वो तेरा घबरा जाना। लगाकर मेरे माथे पर काला टीका, मुझे हर नजर से बचाना, बहुत याद आता है मां, वो गुजरा हुआ जमाना। मां कसम

संभल जा ऐ पाक, वर्ना खौल उठेगा खून हिंदु्स्तानी

उसकी नापाक हरकतों से होती हर वक्त   परेशानी, कितना भी समझाओ उसको, वो करता जाता मनमानी। उसकी दोगुली बातों पर मुझको होती बड़ी हैरानी, अरे हमने गर घूर के भी देखा, तो मांगेगा तू पानी,   संभल जा ऐ पाक वर्ना खौल उठेगा खून हिन्दुस्तानी। छोड़ दे अब ये दरिंदगी, बंद कर अब तू शैतानी, अमन के बदले घोंपे पीठ में खंजर , ऐसा पड़ोसी तू बेईमानी, सरहद पर काटे सिपाहियों के सिर , है कोई राक्षस तू हैवानी । भूले नहीं हैं, ना भूलेंगे दी है हमने जो कुर्बानी , संभल जा ऐ पाक , वर्ना खौल उठेगा खून हिन्दुस्तानी। ना ले इम्तिहान हमारे सब्र का ,   ना बन तू इतना अभिमानी, गर उठा ली हमने भी बंदूक , शर्माएगा होने पर तू पाकिस्तानी। मत भूल 71 में तू हारा था , कारगिल में तुझको दौड़ा के मारा था। भीख में दिए थे 65 करोड़ , जब हुआ बंटवारा था। एक दिन खुद में हो जाएगा तू दफन ,   छोड़ दे अब ये कारसतानी , संभल जा ऐ पाक , वर्ना खौल उठेगा खून हिन्दुस्तानी। कश्मीर का तुझको लालच , चीन के दम पर भरता तू दम , तेरी आंखों में जेहाद , लेकिन नीयत में आतंकवाद पनपता हरदम। तेरे नापाक मंसूबे

एक खत अमिताभ बच्चन जी के नाम....

सदी के महानायक माननीय श्री अमिताभ बच्चन जी आपने हाल ही में अपनी नातिन और पोती को संबोधित करते हुए देश की हर बेटी के नाम एक खत लिखा है। आपके इस खत से काफी हद तक सहमत हुआ जा सकता है। एक दादा और नाना होने के नाते जो चिंता आपने खत में व्यक्त की है उसके मर्म को मैं समझ सकता हूं। शायद वर्तमान की समाजिक व्यवस्था और आबोहवा ने आपको ये खत लिखने पर मजबूर किया हो। एक बेहद सुंदर और प्रेरणादायक सलाह   आपने खत के माध्मम से देश की तमाम बेटियों को दी है इसमें कोई दो राय नहीं है। साथ ही आपके इस खत को देश की हर बेटी को पढ़ना चाहिए और ये खत देश की तमाम बेटियों को अपना मुस्तबिंद खुद लिखने में मील का पत्थर साबित हो सकता है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। किंतु मेरे बच्चन जी मेरे निजी विचार आपके इस खत से थोड़ा अहसमत होने पर मजबूर कर रहे हैं। खत के माध्यम से देश की तमाम बेटियों और महिलाओं को आपने एक बहुत अच्छा संदेश दिया है। लेकिन मुझे लगता है बेटियों को संदेश देने के साथ-साथ आपने कहीं ना कहीं समाज पर एक कुटाराघात भी किया है। आपके इस खत से ऐसा प्रतीत होता है कि समाज में अब भी ढेरों बुराईयां हैं,

हां कश्मीर हूं मैं......

दोस्तों वर्तमान समय में कश्मीर में जो हो रहा है या फिर जो दशकों से होता चला आ रहा है वह सचमुच बहुत पीड़ादायक है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन एक लेखक, एक विचारक के तौर पर कश्मीर को लेकर मेरे भीतर जो संवेदना उत्पन्न होती है उसे कुछ पंक्तियों के साथ आपसे साझा कर रहा हूं, और मेरा दावा है ये पंक्तियां आपको भी झकझोर के रख देंगी..... हां कश्मीर हूं मैं...... सर पर सजाए मुकुट जैसे हो कोई राजा, लेकिन फकीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं..... मेरी आबो हवा में हर कोई खो जाता, शायद तभी मैं धरती का स्वर्ग कहलाता, लेकिन सच कहूं तो फूटी तकदीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं........ मौसम यहां का जितना सर्द है, उससे कहीं ज्यादा दफन मेरे सीने में दर्द है, देखकर अपनी ये दुर्दशा, आंखों से टपकाता नीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं........ शायद मैं हूं कोई खूबसूरत महबूबा, हर कोई मुझको पाने में डूबा, ऐसा लगता है जैसे द्रोपदी का चीर हूं मैं, हां कश्मीर हूं मैं..... ये कहता मैं उसका हूं, वो कहता मैं उसका हूं, कोई तो बताए आखिर मैं किसका ह