हां कश्मीर हूं मैं......
दोस्तों वर्तमान समय में कश्मीर में जो हो रहा है या फिर जो दशकों से
होता चला आ रहा है वह सचमुच बहुत पीड़ादायक है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है
इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन एक लेखक, एक विचारक के तौर पर कश्मीर को लेकर
मेरे भीतर जो संवेदना उत्पन्न होती है उसे कुछ पंक्तियों के साथ आपसे साझा कर रहा
हूं, और मेरा दावा है ये पंक्तियां आपको भी झकझोर के रख देंगी.....
हां कश्मीर हूं मैं......
सर पर सजाए मुकुट जैसे हो कोई राजा, लेकिन फकीर हूं मैं,
हां कश्मीर हूं मैं.....
मेरी आबो हवा में हर कोई खो जाता,
शायद तभी मैं धरती का स्वर्ग कहलाता,
लेकिन सच कहूं तो फूटी तकदीर हूं मैं,
हां कश्मीर हूं मैं........
मौसम यहां का जितना सर्द है,
उससे कहीं ज्यादा दफन मेरे सीने में दर्द है,
देखकर अपनी ये दुर्दशा, आंखों से टपकाता नीर हूं मैं,
हां कश्मीर हूं मैं........
शायद मैं हूं कोई खूबसूरत महबूबा,
हर कोई मुझको पाने में डूबा,
ऐसा लगता है जैसे द्रोपदी का चीर हूं मैं,
हां कश्मीर हूं मैं.....
ये कहता मैं उसका हूं, वो कहता मैं उसका हूं,
कोई तो बताए आखिर मैं किसका हूं,
या फिर किसी नाजायज बाप की ज़ागीर हूं मैं,
हां कश्मीर हूं मैं...........
बंदूकों के साएं में जी रहा, जैसे कोई कालापानी हूं,
खून की नदियों में बह गई, मैं वो जवानी हूं।
हर दिन कलेजे को छलनी कर दे, ऐसा तीर हूं मैं,
हां कश्मीर हूं मैं......
मेरे लिए तुम कब तक लड़ोगे,
कब तक मेरी छाती पर मूंग दलोगे।
अब तो दर्द से फट चुकी हैं आंखें, हो चुका कोई धुंधली तस्वीर हूं मैं,
हां कश्मीर हूं मैं........ हां कश्मीर हूं मैं.....
विनोद यादव
7276969415
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