भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को...

जवानों की शहादत पर कैसे चुप रहा जाऊं मैं,
मैं दिल्ली नहीं सबकुछ जान के भी मौन हो जाऊं मैं।
बनकर चट्टान दुश्मानों से मैं टकरा जाऊंगा,
सीने पर जख्म देने वालों को मौत की नींद सुलाऊंगा।
दे दो बंदूक अब मेरे हाथों में मैं जाऊंगा लड़ने को,
भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को।

दिल्ली तेरे हाथों में वक्त चूंड़ियां पहनाएगा,
तेरी कायरता पर इतिहास का सर शर्म से झुक जाएगा।
सीमा पर खून बहे और दिल्ली तू मौन रहे,
ऐसे में तू ही बता असली अपराधी कौन रहे।
बुजदिलों के हाथ कांपते हैं कुछ भी करने को,
भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को।

दुर्योधन तबाही मचा रहा कश्मीरी क्यारों में।
कृष्ण की नीतियां फेल हो रही इन बारूदी बौछारों में।
अर्जुन का गांडिव अचेत पड़ा है, लाशों के अम्बारों में,
भीम बेचारा लाचार खड़ा है सीमा के गलियारों में।
लेकिन समंदर को आंख दिखाते, समझा दो इन झरनों को,
भारत मां का मान बचाने मैं तैयार हूं मरने को,
दे दो बंदूक अब मेरे हाथों में मैं जाऊंगा लड़ने को।

विनोद विद्रोही 

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