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Showing posts from November, 2017

बरसी मनाने का अधिकार नहीं!

26/11 बरसी: ************** आतंकी हमले की बरसी पर फिर कैंडल लेकर निकलेंगे। जवानों की शहादत पर आज फिर दिल हमारे पिघलेंगे। आज फिर उनके कसीदे पढ़ेंगे, यादों में उनकी झूल जायेंगे, और कल, कौन शहीद काहे की शहादत सब भूल जायेंगे।। जब तक देश इस परिपाठी पर चलता रहेगा, दर्द आतंक का मिला है और मिलता रहेगा। बाकी देश तो सम्भल चुके तुम भी अब सम्भलना सीखो। दुश्मन की छाती पे चढ़कर तुम भी मूंग दलना सीखो।। कथित मित्र अमरीका को कब तक मदद के लिये पुकारोगे। आखिर तुम कब घर में घुसकर हाफिज को मारोगे।। हम रोयें और आतंकी आजाद घूमें ये स्वीकार नहीं। जब तक देश के गुनहगार जिंदा हैं, हमें बरसी मनाने का अधिकार नहीं।। विनोद विद्रोही नागपुर

कुछ नया लिखो।

नया  लिखो: ********* यूं ही सोच रहा था, आज क्या लिखो। कलम ने कहा कुछ नया लिखो। बात सुनकर कलम की सोच मेरी सकपकाई, और खुद पे ही हंसी आयी। फिर दिल ने कहा हर तरफ वही कहानी, वही दर्द तो बयां होता है। कैसे लिखूं, कुछ भी तो नहीं नया होता है।। क्या फर्क पड़ता इसकी या उसकी सरकार है। भूख, गरीबी, हत्या, बलात्कार हर तरफ मेरे यार है। आतंकवाद से लड़ने में भी हम फेल रहे हैं। कभी कम तो कभी ज्यादा हम झेल रहे हैं।। भूलकर ये सब आगे कैसे मैं बढ़ जाऊँ, बिना नये के नया कैसे लिख पाऊँ। कैसे कहूं कितनी पीड़ा ह्रदय में छुपाये बैठा हूं, एक नये भारत की आस मैं तो कब से लगाये बैठा हूं।। विनोद विद्रोही नागपुर

हर हाल में सूरज को आना होगा।

एक गीत: हर हाल में फर्ज अपना निभाना ही होगा। अंधेरे को चीरकर सूरज को आना ही होगा। दुखों की रात कट जायेगी, गमों की खाई पट पायेगी। कभी आंसू तो कभी हंसी, ये ज़िंदगी यूं ही कट जायेगी।। उजाले को अपना फर्ज निभाना ही होगा। अंधेरे को चीरकर सूरज को आना ही होगा।। क्या हुआ जो तेरे अपने तुझे छोड़ गये। नाजुक से थे रिश्ते आसानी से तोड़ गये। वो अपनी राह गये, तुझे भी अपनी राह जाना ही होगा। अंधेरे को चीरकर सूरज को आना ही होगा।। चूंकि मुफलिसी में हूं तो लोग अब ज्यादा बोलते नहीं। मेरे जान लेते हैं, अपने राज़ खोलते नहीं।। दर्द तुझे भी विद्रोही, अब छुपाना ही होगा। अंधेरे को चीरकर सूरज को आना ही होगा।। विनोद विद्रोही नागपुर

एक खत देश की बेटियों के नाम।

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लिखता हूं इक ख़त मैं देश की हर बेटी के नाम। बेटियों पढ़ लेना तुम इसको छोड़कर हर काम। यूं तो नाम से तुम्हारे देश में कई अभियान चल रहे हैं। लेकिन इन अभियानों के ना आज ना तो कोई कल रहे हैं।। तुम्हारे सम्मान के लिये हर तरफ दिखावा होगा। पर सच कहूं कदम-कदम पर साथ तुम्हारे छलावा होगा।। दिन के उजाले में जो लोग बेटियों पर बड़े-बड़े भाषण झाड़ते हैं। रात के अंधेरे में यही लोग किसी अबला के कपड़े फाड़ते हैं।। लेकिन बेटियों तुम घबराना नहीं, तुम्हें अपनी ताकत को पहचानना होगा। देश ने पहले भी माना है, आगे भी  तुम्हारे नाम का लोहा मानना होगा।। मुझसे विश्वास है तुमपर, तुम्हें जो कहना है वो सबसे कही दोगी। हां तुम सीता ज़रूर हो, लेकिन हर दौर में तुम अग्निपरीक्षा नहीं दोगी।। तुम दुर्गावति हो, पद्मवति हो, तुम ही रानी लक्ष्मीबाई हो। तो कभी देश की खातिर बेटा कटा  देने वाली पन्ना दाई हो।। तो बेटियों अपने अस्तित्व की नाव तुम्हें ही खेना है, अब ये पतवार उठा लो। गर सियासत तुम्हारा इस्तेमाल करे, तो ये सरकार उठा लो।। बेटियों अपने सम्मान की गिरी अब हर दीवार उठा लो। जो भेड़िये हद से आगे बढ़ने ल