मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा

मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा,
छू लूं कितनी भी बुलंदियां, तुझसे दू कहां जाऊंगा।
मां यहां परदेस में तेरी हर बात याद आती है,
याद कर तेरी बातें, अक्सर आंखें भर जाती हैं।
लौटकर आऊंगा तो हर हाल तुझको सुनाऊंगा,
मां तेरे उपकार कभी ना भूल पाऊंगा।

हजारों दुख सहकर तूने है मुझे पाला,
खुद भूखी रहकर मुझको दिया निवाला।
जब भी कदम डगमगाए, मां तूने ही संभाला,
तेरे आर्शीवादों ने मुझे हर मुश्किल से निकाला।
मां तेरी ममता का कर्ज कैसे मैं चुकाऊंगा,
मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा।

मां याद आते हैं वो बचपन के दिन सुहाने,
दिल में इस कदर बसे हैं, कभी होते नहीं पुराने।
अपनी जरूरतों को मारकर लाती थी तू खिलौने,
जब तक खा ना लूं, कभी देती नहीं थी सोने।
अब तो यहां कई रातें बिना खाए बित जाती हैं,
मायूस घर की रसोई मुझे हर रोज बुलाती है।
मां क्या कभी, हर निवाला फिर से तेरे हाथों से खा पाऊंगा,
मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा।

वो पापा की डांट पर दौड़कर मुझे आंचल में छुपाना,
छींक भी आ जाए तो वो तेरा घबरा जाना।
लगाकर मेरे माथे पर काला टीका, मुझे हर नजर से बचाना,
बहुत याद आता है मां, वो गुजरा हुआ जमाना।
मां कसम तेरे हर आंसू की अब ना तूझे सताऊंगा,
मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा।

मां आज दूर हूं तुझसे, पर मेरा हर हाल तू जानती है,
मेरी सलामती की दुआ, दिन-रात तू मांगती है।
दरवाजे पर खड़ी होकर घंटों मेरा रास्ता निहारती है।
घर के सूने आंगन में कभी ढूंढती, तो कभी पुकारती है,
मुझसे जुड़ी हर चीज को बड़े प्यार से संवारती है,
रोक कर अपने आंसू, हर दिन मन को अपने मारती है।
तू घबरा मत मां, मैं जल्द ही लौट आऊंगा,
अब सारा जीवन, तेरे चरणों में ही बिताऊंगा,
मां तेरे उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगा।

विनोद यादव

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