क्या भर गया है पानी भुजदंडों में.....

बांटना चाहते हैं वो अखंड राष्ट्र को खंडों में,
कायरता झलक रही है, जिनके हथकंडों में।
अस्तित्तव टिका है जिसका काली कमाई के चंदों में,
हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में।

देश का बचपन ले रहा सिसकियां बारूदी बौछारों में,
भूख यहां पेट बांध के सो जाती है किनारों में।
हर दिन अपमानित होता तिरंगा देशद्रोह के नारों में,
शिक्षा के मंदिर जल रहे हैं, नफरती अंगारों में।

सिर्फ बर्बादी की तस्वीर दिखती है इन पाखंड़ों में,
हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में।

सन्नाटा पसरा रहता है, लाल चौक जैसे चौराहों में,
ज़िंदगी लाचार खड़ी है, मौत की पनाहों में।
कांटें बोए हुए हैं इन कश्मीरी राहों में,
लोकतंत्र दम तोड़ रहा अलगाववाद की बांहों में।

अरे इनका कोई विश्वास नहीं है शांति-संबंधों में,
हिम्मत है तो सामने आओ, क्या भर गया पानी भुजदंडों में।

विनोद विद्रोही

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