धर्म की आग से इंसानियत के मकां जला रहे हो...

असल मसला क्या है हम समझ नहीं पा रहे हैं।
सुना है कुछ लोग मस्जिद तो कुछ लोग मंदिर बनवा रहे हैं।।
सबके दिलों में उनके रहनुमा बसते हैं,
देखकर करतूतें हमारी हमपर वो हंसते हैं।
जिसके दम से ये धरती ये सारा संसार है,
उसकी छत के लिए छिड़ी इतनी बड़ी रार है।
चलो माना तुम्हारा भी और तुम्हारा भी इरादा नेक है,
लेकिन तुम ही तो कहते थे ना, सबका मालिक एक है।।
तो फिर खींची ये तलवारे क्यों हैं,
तुम्हारे निशाने पर कभी कलश तो कभी मिनारें क्यों हैं।
सच कहूं, तुम सब अपनी-अपनी दुकां चला रहे हो,
धर्म की आग से इंसानियत के मकां जला रहे हो।।

विनोद विद्रोही

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