कैसे इस कदर बेपरवाह हो जाते हो....

कैसे इस कदर बेपरवाह हो जाते हो...आखिर  किसके बहकावे में इतने गुमराह हो जाते हो। क्या खूब फर्ज निभाया है तुमने वफादारी का...जिस थाली में खाते हो उसी में छेद कर जाते हो।।

तुममे में हम तो देखते थे  देश का मुस्तकबिल.....किसे पता था एक दिन बन जाओगे वतन के कातिल।।

मजलूमों का खून बहाने वाले कभी  जन्नत के  हकदार नहीं बन पायेंगे......देश का सौदा करने वाले केवल देश के गद्दार कहलायेंगे।।
विनोद विद्रोही

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