अब चुनाव का मतलब जाना है....

आज अचानक सामने से एक चुनाव प्रचार की गाड़ी गुजरी,
गाड़ी को देखते ही कदम जोर उसके पीछे भागने को उठे,
लेकिन उठते कदम वहीं रुक गए और याद आ गए दिन बचपन के,
सावन की फुहारों की तरह बीते थे दिन वो लड़कपन के।

क्या चुनाव, क्या नेता, क्या वोट कुछ भी नहीं जानते थे,
हम तो बस प्रचार गाड़ी के पीछे दौड़कर पर्चे और बिल्ले मांगते थे।
ना कांग्रेस, ना सपा, ना भाजपा से था कोई नाता,
प्रचार गाड़ी से मिले बिल्ले कमीज पर लगाकर हम तो खुद बन जाते थे नेता।।

प्रचार गाड़ी के पीछे भागना, पर्चे-बिल्ले मांगना, चुनावी गानों पर थिरकना था।
हमारे लिए तो चुनाव का मतलब ही सिर्फ इतना था।

वक्त के साथ हम बड़े हो गए,
ना रही वो मस्ती, सामने कई सवाल खड़े हो गए।
प्रचार गाड़ी तो आज भी वही है,
पर उसे देखकर दिल में कोई हलचल नहीं है।।

बचपन की वो मौज अब नहीं आती है,
आज तो हर किसी का एक मजहब है, एक नेता है, एक पार्टी है।
अब समझ आया है चुनाव क्या मतलब क्या होता है,
इंसान को बांटने का ये एक जरिया होता है।।

जब से उस चुनाव वाली प्रचार गाड़ी का सच जाना है,
दिल यही कहता एक दिन फिर उसी बचपन में लौट जाना है।।

विनोद विद्रोही

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