अभिव्यक्त करने वाले के हाथों में तिरंगा हो...
हे भोलेनाथ, शिवशंकर जगत त्रिपुरारी,
सुन लो ये विनंती हमारी।
अब समुंद्र नहीं, राष्ट्र मंथन करना होगा,
देश में छुपे बैठे विषैलों का विष पान तु्म्हें करना होगा।
हे त्रंब्यकेश्वर इतनी तुम कृपा दो,
देशद्रोहियों, आंतकियों पर कहर अपना तुम बरपा दो।।
आशीष दो सबको राष्ट्रप्रेम का,
तुम्हारी जटा से बहती देशप्रेम की गंगा हो,
अभिव्यक्ति की आजादी हो,
लेकिन अभिव्यक्त करने वाले के हाथों में तिरंगा हो।।
विनोद विद्रोही
सुन लो ये विनंती हमारी।
अब समुंद्र नहीं, राष्ट्र मंथन करना होगा,
देश में छुपे बैठे विषैलों का विष पान तु्म्हें करना होगा।
हे त्रंब्यकेश्वर इतनी तुम कृपा दो,
देशद्रोहियों, आंतकियों पर कहर अपना तुम बरपा दो।।
आशीष दो सबको राष्ट्रप्रेम का,
तुम्हारी जटा से बहती देशप्रेम की गंगा हो,
अभिव्यक्ति की आजादी हो,
लेकिन अभिव्यक्त करने वाले के हाथों में तिरंगा हो।।
विनोद विद्रोही
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