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ये कैसा दौर है समाजवादी का....
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ये कैसा दौर है समाजवादी का....परिदर्श दिख रहा सिर्फ़ बर्बादी का। सम्मान की लड़ाई में रिश्तों के टूटने का भय रहता है... घर में भेदी हो तो लंका ढह जाना तय रहता है।। विनोद विद्रोही
आज सुबह घर से बाहर जाने के लिये तैयार हो रहा था की टेबल पर रखा फोन गुर्राने लगा। देखा तो दिल्ली के एक दोस्त का फोन था। दरसल इस दोस्त से एक बार ही मिला हूं वो भी 10 साल पहले अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की एक कार्यक्रम में मुलाकत हुई थी। आज अचानक उसका फोन देख उतनी हैरानी नहीं हुई जितनी हैरानी उससे बात करने के बाद हुई। शुरुआत में हाल-चाल और इधर उधर की बात के बाद उसने कहा... "यार आजकल तुम्हारे पोस्ट फ़ेसबुक पर पढ़ते रहता हूं। तुम्हारी हिंदी काफ़ी अच्छी है। लेकिन इस बात पर बड़ा ताज्जुब है की तुम तो नागपुर रहते हो जो महाराष्ट्र में आता है, फ़िर इतनी अच्छी हिंदी कैसे सीख गये।" दोस्त कि यह बात सुनकर मुझे उससे ज्यादा ताज्जुब हुआ। वहीं मेरा मन 9 साल पहले आईआईटी कानपुर के उस प्रोग्राम में चला गया जहां एक वाद-विवाद स्पर्धा के कार्यक्रम में संचालक ने भी मुझे मजाक में ही सही लेकिन कहा था "काफ़ी हैरानी और खुशी की बात है कि नागपुर महाराष्ट्र से भी कोई हिंदी स्पर्धाओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है" दोस्तों ताज्जुब मुझे इस बात पर है की अच्छी हिंदी बोलने पर कोई हैर...
दोस्तों कल चेन्नई में इंग्लैंड के खिलाफ चौथे दिन का खेल देखकर जीवन का भी खेल समझ में आया। जीवन भी कुछ ऐसा ही है, कब इसका पासा पलट जाए कहा नहीं जा सकता है। साथ ही करुण नायर की बैटिंग देखकर अभिनेता रणबीर सिंह की एड में रॉयल स्टैग की टैग लाइन याद भी आई, "इट्स योर लाइफ मेक इट लार्ज"। दोस्तों करुण नायर की चौथे दिन के खेल की बैटिंग से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। सोचिए कल जब सुबह के सत्र में करुण बैटिंग करने उतरे थे तब वो क्या थे और शाम होते-होते क्या बन गए। कल सुबह तक जिस करुण को भारत में भी कुछ क्रिकेट प्रेमी ही शायद जानते थे, शाम होते-होते पूरा विश्व करुण नायर से रुबरू हो चुका था। इसे ही कहते हैं जिंदगी, जब ये मेहरबान होती है तो स्टार बनते देर नहीं लगती है। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में इंसान की लगन, मेहनत और सबसे अहम भाग्य की भी बड़ी भूमिका होती है। क्योंकि भाग्य भी उनका ही साथ देता है जिनमें कुछ करने का जज्बा होता है, कुछ कर गुजरने की चाह होती है। दोस्तों यहां करुण नायर की बात करके ये समझाना चाहता हूं, व्यक्ति का जीवन भी कुछ ऐसा ही है, कब इसमें तब्दीली आ जाए कहा नहीं जा सकता ...
वह ताउम्र ढोता रहा जिंदगी का हर बोझ, पर कंधे पर लाशों का बोझ उससे ढोया ना गया। अरे आंखें बन चुकी थी समंदर, पर मजबूरियों के आगे उससे रोया ना गया। ये तस्वीरें देखकर हमारे नेताओं का दिल क्यों नहीं सिहरता है, कागजों पर बनी विकासी योजनाओं से कहीं पेट भरता है।। चाहो तो लूट-खसोट का ये चलने सरेआम कर दो, ढंग की जिंदगी ना सही, ढंग की मौत का तो इंतजाम कर दो।। विनोद विद्रोही
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