पाला ना पड़े किसी का निजी अस्पतालों से।

अक्सर भयभीत हो जाता हूं ऐसे भयावह ख्यालों से।
पाला ना पड़े किसी का निजी अस्पतालों से।।
कदम-कदम पे इतना मांगते जैसे घूस लेते हैं।
घर-बार, धन-दौलत ही नही, खून तक चूस लेते हैं।।
निजी अस्पतालों की मार से हम ना यूं बेहाल होते।
जो देश के सरकारी अस्पताल, सचमुच अस्पताल होते।।
विनोद विद्रोही

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