मेरा पेट भरकर, मां को भूखा देखा है।
मजबूरियों के बोझ को बड़ी हिम्मत से ढोते देखा है।
मेरी हटों पर चांटा मारकर, मां को रोते देखा है।
घर में इक दाना नहीं, मैंने ऐसा सूखा देखा है।
फिर भी मेरा पेट भरकर, मां को भूखा देखा है।।
विनोद विद्रोही
मेरी हटों पर चांटा मारकर, मां को रोते देखा है।
घर में इक दाना नहीं, मैंने ऐसा सूखा देखा है।
फिर भी मेरा पेट भरकर, मां को भूखा देखा है।।
विनोद विद्रोही
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