तुम हाफिज बने रहे अशफाक ना बन पाए।

सफर में थे हम तुम साथ चले।
खुद को देखो, फिर हिंदोस्तां में झांको।
दूसरों पर गुर्राने से कुछ ना होगा।
मशवरा है, अब तो अपने गरेबां में झांको।।

बोये जा रहे फसल तुम आतंक की।
कहर बरप रहा, जरा आसमां में झांको।
जो लिप्त हो लाशों के कारोबार में तुम।
जगह तुम्हारी बची की नहीं, जाके शमशां में झांको।।

अब तक मिली, खैरात मिलना अब बंद हुई।
तो जाहिर है ये फकीर बौखलायेंगे।।
छीछड़े फेंककर अब तक तुमने जिनको पाला।
वो श्वान अब तुम्हें ही काट खायेंगे।।

पाक नाम रखने वाले, कभी पाक ना बन पाये।
बेवजह चिल्लाते रहे, कभी बेबाक ना बन पाये।।
बन बिस्मिल हमने सदा हाथ बढ़ाया दोस्ती का।
तुम ही हाफिज बने रहे, कभी अशफाक ना बन पाये।।
विनोद विद्रोही
नागपुर

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