वतन की खातिर मरने को तैयार रहना।

लाठियों की चोटों में भी,
गीत वंदे मातरम का गाते गए।
क्या होती है पीड़ा गुलामी की,
घूम-घूम सबको बताते गए।।
भरी जवानी त्याग दिया परिवार,
त्यागें उनके जो भी अपने थे।
उन सरफरोशों की निगाहों में तो,
बस आजाद भारत के सपने थे।।

कैसे भूलूं मैं डायर की बगावती बोली को।
वो जलियाँवाला बाग, उस खूनी होली को।
कैसे भूलूं मैं भगत की फांसी, शेखर की
अंतिम गोली को।
कैसे भूलूं मैं हाडा रानी का कटा शीश
वो मेहंदी कुमकुम रोली को।।

ऐ मेरे साथियों आजादी की हमने बड़ी
कीमत चुकाकर है।
लहू की नदियों में बहकर आजादी
घर आई है।
तो वतन की खातिर अपना सारा
प्यार रखना।
गर आन पड़े मुसीबत, तो मरने के
लिए खुद को तैयार रखना।।
विनोद विद्रोही
नागपुर

Comments

Popular posts from this blog

हां...गब्बर जिंदा है!

अभिव्यक्ति की आजादी से मुझे कोई बैर नहीं...