तिरंगा फहराने पर गोली खाई है।

लगता ये मसला अब बन चुका स्थाई है।
मजहब ने देशप्रेम से ऊपर जगह पाई है।
रंगों में बंट रहा मुल्क बात ये दुखदायी है।
जो वतन की बात ना करे सोच वो हरजाई है।

मुझको तो बस बात इतनी समझ आई है।
एक डाल के हम फूल,  एक दूजे की परछाई हैं।
फिर कैसा ये धुंआ है, किसने ये आग लगाई है।
लगता है सियासी मकानों से फिर कोई चिंगारी आई है।

ये देश है राम-रहीम का, बिस्मिल और अशफाक का।
मिलकर सब रहते, काम नहीं यहां किसी नापाक का।
फिर नफरतों वाली ये हवा कहां से बह के आई है।
क्यों तिरंगा फहराने पर एक बेटे ने गोली खाई है।
विनोद विद्रोही
नागपुर

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