तो हम पूरा थोक बाजार होते।

गर तुम पढ़ने को तैयार होते,
तो हम कोई मशहूर अखबार होते।
जहां में कहीं दर्द के खरीदार होते।
तो हम पूरा थोक बाजार होते।।

जिंदगी के मंच पर रोज नाटक करना पड़ा।
भला कैसे ना हम कलाकार होते।
हर मोड़ पे नई भूमिका में नज़र आए।
तो कैसे हम एक किरदार होते।।

वक़्त रहते जो समझ पाते अहमियत,
तो हम भी किसी का सारा संसार होते।
ना वो ठोकर लगती, ना हाथ से छूटता।
तो कांच के रिश्ते यूं ना तार-तार होते।।
विनोद विद्रोही

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