तुम क्या अमेरिका ग्रेट बनाओगे....
नहीं चहिये ये ये पद-प्रतिष्ठा, नहीं चहिये ये रुपया-पैसा। जहां प्रेम के मीठे बोल हो, सूखी ही सही पर शुकून की रोटी हो...देश चहिये हमें ऐसा। मेरे देश में नमक रोटी खाकर, ठंडा पानी पीकर भी चहेरे पर सदा मुस्कान रहती है...तुम्हारे यहां लाखों कमाकर भी सांसत में हमारी जान रहती है।। होंगे तुम दुनिया के कोई बड़े तानाशाह...लेकिन हमसे बड़ा नहीं है कोई बादशाह। माना विकसित हो, आज आपार धन-सम्पदा पर सवार हो...लेकिन सच कहूं तो तुम मनोरोगी हो किसी विकृति का शिकार हो।। मत भूलो वो उतनी ही ऊपर से गिरा है, जितना ऊंचा हुआ है...और घमंड का सिर एक दिन ज़रूर नीचा हुआ है। अरे तुम क्या फ़िर से अमेरिका को ग्रेट बनाओगे...हमारे पड़ोसी मुल्क की तरह एक दिन तुम भी कहीं के ना रह जाओगे।। बेशक छलनी कर दो तुम आज हमारा सीना...लेकिन याद रखना हमारी बुलंदियों के आगे एक दिन तुम्हें भी छूटेगा पसीना।। जय हिन्द, विनोद विद्रोही