कहां ढूँढूं वो कलाई मैं...

आज रक्षाबंधन पर उस बहन का दर्द लिखने कि कोशिश की है जिनके भाई देश के लिये कुर्बान हो गये।
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सबकुछ हर दिन जैसा है,
कुछ भी तो नया नहीं।
क्या दर्द छुपाये बैठी हूं दिल में,
कर सकती हर किसी से बयां नहीं।

सूना है घर का आंगन,
लगता कुछ ना बाकी है।
भइया तुम आये नहीं,
देखो आज राखी है।।

तुमसे ही तो थी हस्ती मेरी,
कैसे भूलूं भाई मैं।
किसको बांधु ये राखी मैं,
ढूंढूं कहां वो कलाई मैं।।

तुम कुर्बान हुये वतन पर,
किसी फूल कि तरह मुरझाई मैं।
आंखें अब भी राह तकती तुम्हारी,
फ़िरती दर-दर पगलाई मैं।

तुम गये सबको छोड़कर,
जिंदा लाश सी बन गयी भाई मैं।
किसको बांधु ये राखी,
ढ़ूंढूं कहां वो कलाई मैं।।

विनोद विद्रोही

देश की उन बहनों को समर्पित जिनके भाई देश के लिये शहीद हो गये।।
जय हिन्द🇮🇳🇮🇳🇮🇳

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