हिंदी का ये हाल कैसा है...

हाल-ए-हिंदी:
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होना चहिये था जिसे देश के
माथे की बिंदी।
पर अफसोस कहीं कोने में पड़ी
सिसक रही है हिंदी।।

कुछ कलम के सिपाही ज़रूर हैं
जो हिंदी की लाज बचा रहे हैं।
वरना आलम तो ये है की
लोग हिंदी बोलने तक से शरमा रहे हैं।।

अब भी वक्त है जागो हिंदी पर
जमी ये अंग्रेजी बर्फ फोड़नी चहिये।
राष्ट्रभाषा के दर्जे से भी ज़रूरी है,
रगों में हिंदी दौड़नी चहिये।।

विनोद विद्रोही
नागपुर(7276969415)

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