...और मैं निरुत्तर हो गया।



कल रात को घर लौटते वक्त बरसात हो रही थी। चूंकि रात काफ़ी हो चुकी थी तो मैंने कहीं रुकना ठीक नहीं समझा। गाड़ी के मीटर की सुइयों ने 20 पार किया ही था की मेरी नज़र एक बुजुर्ग व्यक्ति पर पड़ी जो फुटपाथ पर एक कोने में दुबक कर, एक बरसाती ओढ़े सोने की कोशिश कर रहा था।

उस बुजुर्ग को देख मैंने गाड़ी के ब्रेक लगा दिये। मैं उस बुढ़े व्यक्ति के पास गया और कहा बाबा क्या हुआ घर नहीं गये। बाबा ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मैं अंदर तक हिल गया। बाबा ने लड़खड़ाती ज़बान से कहा...

"ये देश ही मेरा घर है...पराये मुल्क से जबरदस्ती घुस आये लोगों के समर्थन में जिस तरह देश आज सड़कों पर है। उनको   यहां बसाने के लिये आंदोलन हो रहे हैं। अगर उसका 1प्रतिशत भी कोई हमारे लिये लड़ता तो आज हमारे सर पर भी छत होती"

उस बुजुर्ग की बातों ने मुझे निरुत्तर कर दिया। मैंने बाबा का हाथ पकड़ा और उन्हें पास ही एक टीन के शेड के नीचे बिठा दिया और गाड़ी चालू कर घर की ओर चल दिया। रास्ते भर बाबा के कहे एक-एक शब्द कानों में गूंजते रहे और बहुत कुछ सोचते-सोचते कब घर आ गया पता ही नहीं चला।
विनोद विद्रोही
नागपुर(7276969415)

#रोहिंग्या #व्यंग्य

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