ये मत समझ तेरे किए से अंजान था...

ये मत समझ की तेरे किए से अंजान था,
खामोश रहना दिल के जज्बातों का अरमान था॥
जिसे बड़ी आसानी से तोड़कर चले गये तुम,
वो कुछ और नहीं, मेरे भरोसे का मकान था।।
विनोद विद्रोही

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