देश कब तक चलेगा आरक्षण की बैसाखी पर...

अक्सर चिंतित हो उठता हूं इस बेतुकी परिपाटी पर ,
आखिर देश कब तक चलेगा आरक्षण की,
बैसाखी पर।।
जितनी प्रतिभायें खाक हुई है इस सुविधा की बाती पर,
उतने ज़ख्म दिये हैं तुमने भारत मां की छाती पर।।

आरक्षण के ये पासे फेंके जाते हैं दिल्ली के दरबारों से,
एक धोखा सा लगते हैं ये समानता के अधिकारों से।।
कब तक आरक्षण बांटोगे तुम जाति के इन बाज़ारों में,
देना ही है तो दे दो इसे आर्थिक आधारों में।।

संविधान की कसमों को भूलकर ऐसे तुम ऐंठे हो,
जिस डाली को कब का कट जाना था, उसपर झूला डाले बैठे हो।।
आरक्षण के बल पे भले तुम आज अर्जुन बन जाओगे,
लेकिन याद रहे कभी एकलव्य से श्रेष्ठ ना कहलाओगे।।
विनोद विद्रोही

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