ऐ जिंदगी जब तू चंद दिनों की मेहमान है, तो आज बिखर भी जाए तो क्या नुकसान है।। निकल पड़ा हूं अकेले ही दुश्मनों से लोहा लेने, जीत पक्की है, क्योंकि अब अपनी भी हथेली पे जान है।। मैं यूं ही मुक्सुराता रहता हूं मुसीबतों के आगे, देखकर मेरा ये सब्र आईना भी हैरान है।। और कहीं दोनों दिखें तो मुझे भी बतला देना, मैं भी देखूंगा, वैसे भी बहुत कम बचे बाघ और इंसान है। जिनको मिला था वो लौटा रहे थे, अपने नसीब में कहां ये सम्मान है। जो तुमने लौटाया वो तो प्यार था अवाम का, मेरी नजर में तो ये सम्मान का अपमान है।। काम निकलवाना है तो फाइलों के साथ, नोटों का वजन भी रखना सिखो साहब, इस सिस्टम का ऐसा ही चलन है, और तुम कहते हो बेईमान है।। इससे पहले तो यहां सब ठीक था, बीती रात एक नेता का भाषण क्या हुआ, आज पूरा इलाका लहूलुहान है।। ऐ जिंदगी जब तू चंद दिनों की मेहमान है, तो आज बिखर भी जाए तो क्या नुकसान है।। विनोद विद्रोही