हां सच है...भावनाओं को समझो।
हां सच है...भावनाओं को समझो:
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यूं तो आज काम बहुत थे, लेकिन एक दोस्त के जिद करने उसके साथ दोपहर 12 बजे एक कंपनी के वेयर हाउस(गोदाम) में जाना पड़ा। दोस्त घर पर लेने आया, फिर उसकी बाइक पर बैठकर हम चल दिये।
रास्ते भर में बात-चीत करते 20 किलोमीटर का सफ़र आसानी से खत्म हो गया। हम कंपनी के गोदाम पहुंचे। कंपनी बड़ी थी इसलिये यहां सुरक्षा व्यवस्था भी पर्याप्त दिखी। अंदर जाते समय सुरक्षा गार्ड ने जरूरी जानकारियां अपने रजिस्टर में दर्ज की और हमें जाने के लिये कहा।
मैं उसकी ओर मुस्कुरा कर देखा और धन्यवाद कह कर आगे बढ़ा ही था की उसने मुझे टोका और कहा "सर कहां से हो"। उसका इतना कहना था की मेरे मित्र ने मेरा हाथ पकड़कर बोला "अबे छोड़ना यार चल अंदर चलें"। दोस्त की बात को दरकिनार करते हुये मैं सुरक्षा गार्ड के पास गया और बोला वैसे तो नागपुर रहता हूं,. किंतु मूलतः हम इलाहबाद के पास प्रतापगढ़ के हैं। इतना कहकर मैं आगे बढ़ गया। लेकिन इलाहबाद-प्रतापगढ़ का नाम सुनकर सुरक्षाकर्मी के चेहरे पर जो कौतुहलता दिखी उससे मैं समझ गया हो ना ये शख्स भी वहीं-कहीं आसपास का है। इसके अलावा मेरे भीतर से एक आवाज़ भी आयी कि शायद इसे ही कहते हैं की मिट्टी, मिट्टी को पहचान लेती है।
दोस्तों अगर मैं इस कहानी का शीर्षक बदलकर यहीं इसे खत्म कर देता तो भी शायद आपको पसंद आ जाती। लेकिन अगर मैं इस कहानी को यहीं खत्म कर देता तो ये लेखनी और कहानी के साथ अन्याय होता। क्योंकि इससे आगे की घटना इससे ज्यादा दिलचस्प है।
अपना काम निपटा कर हम बाहर की ओर लौट रहे थे। सुरक्षाकर्मी हमें दूर से देखकर ही खड़ा हो गया, जैसे हमारा ही इंतज़ार कर रहा हो। जैसे ही मैं पास पहुंचा, वह बोल पड़ा "सर जी हम भी इलाहबाद के पास मऊआएमा के हैं और एकदम खुश दिखाई दे रहा था। उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुये मैंने उससे और बातचीत की , उसका हालचाल जाना। ये वार्तालाप खत्म हुआ तो मैंने कहा अच्छा चलता हूं। फिर कभी यहां आना हुआ तो आपसे मुलाकत करूंगा। उसने जवाब में कहा "हां जी सर जरूर..अपना ख्याल रखें गुड नाइट"।
चूंकि हम 12 बजे निकले थे और काम निपटाते हमें 3 बज गये थे। और 3 बजे सुरक्षाकर्मी के मुंह से गुड नाइट सुनकर मेरा दोस्त जोर से हंस पड़ा। लेकिन मैंने हंसने की बजाय उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा गुड नाइट भैया अपना ख्याल रखें।
चाहता तो मैं उसे गुड नाइट का अर्थ समझाकर उसकी बात को दुरुस्त कर सकता था। लेकिन मैं जानता था गुड नाइट का एक शब्द सिखाकर मैं इसे अंग्रेजी का पंडित नहीं बना सकता। ये व्यक्ति अधेड़ उम्र में अपना गांव छोड़कर यहां काम कर रहा है । इसके पीछे उसकी कितनी मजबूरियां होंगी। जिस परिवेश से ये शख्स आया है वहां गुड मॉर्निंग, गुड नाइट का चलन नहीं होगा। वैसे भी उसके गुड नाइट बोलने के भाव से ऐसा प्रतीत हुआ की उसके लिये इसका अर्थ किसी के लिये सम्मान में कहे जाने वाले शब्द हैं। इसलिये उसके इस भाव को मैं मरने नहीं देना चाहता था।
आज सीखने को मिला की भावनाएं कभी शब्द की मोहताज नहीं होती। यदि हमारे भावों में सच्चाई हो तो उसे हम किसी भी भाषा या माध्यम से प्रस्तुत करें, सामने वाला समझ ही जाता है। गुड नाइट की बात पर हसने वाला मेरा दोस्त भी मेरी बात अच्छे से समझ गया था और अब शांत मुद्रा में गाड़ी वापस घर की ओर दौड़ाये जा रहा था।
मौलिक
विनोद विद्रोही
नागपुर(7276969415)
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यूं तो आज काम बहुत थे, लेकिन एक दोस्त के जिद करने उसके साथ दोपहर 12 बजे एक कंपनी के वेयर हाउस(गोदाम) में जाना पड़ा। दोस्त घर पर लेने आया, फिर उसकी बाइक पर बैठकर हम चल दिये।
रास्ते भर में बात-चीत करते 20 किलोमीटर का सफ़र आसानी से खत्म हो गया। हम कंपनी के गोदाम पहुंचे। कंपनी बड़ी थी इसलिये यहां सुरक्षा व्यवस्था भी पर्याप्त दिखी। अंदर जाते समय सुरक्षा गार्ड ने जरूरी जानकारियां अपने रजिस्टर में दर्ज की और हमें जाने के लिये कहा।
मैं उसकी ओर मुस्कुरा कर देखा और धन्यवाद कह कर आगे बढ़ा ही था की उसने मुझे टोका और कहा "सर कहां से हो"। उसका इतना कहना था की मेरे मित्र ने मेरा हाथ पकड़कर बोला "अबे छोड़ना यार चल अंदर चलें"। दोस्त की बात को दरकिनार करते हुये मैं सुरक्षा गार्ड के पास गया और बोला वैसे तो नागपुर रहता हूं,. किंतु मूलतः हम इलाहबाद के पास प्रतापगढ़ के हैं। इतना कहकर मैं आगे बढ़ गया। लेकिन इलाहबाद-प्रतापगढ़ का नाम सुनकर सुरक्षाकर्मी के चेहरे पर जो कौतुहलता दिखी उससे मैं समझ गया हो ना ये शख्स भी वहीं-कहीं आसपास का है। इसके अलावा मेरे भीतर से एक आवाज़ भी आयी कि शायद इसे ही कहते हैं की मिट्टी, मिट्टी को पहचान लेती है।
दोस्तों अगर मैं इस कहानी का शीर्षक बदलकर यहीं इसे खत्म कर देता तो भी शायद आपको पसंद आ जाती। लेकिन अगर मैं इस कहानी को यहीं खत्म कर देता तो ये लेखनी और कहानी के साथ अन्याय होता। क्योंकि इससे आगे की घटना इससे ज्यादा दिलचस्प है।
अपना काम निपटा कर हम बाहर की ओर लौट रहे थे। सुरक्षाकर्मी हमें दूर से देखकर ही खड़ा हो गया, जैसे हमारा ही इंतज़ार कर रहा हो। जैसे ही मैं पास पहुंचा, वह बोल पड़ा "सर जी हम भी इलाहबाद के पास मऊआएमा के हैं और एकदम खुश दिखाई दे रहा था। उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुये मैंने उससे और बातचीत की , उसका हालचाल जाना। ये वार्तालाप खत्म हुआ तो मैंने कहा अच्छा चलता हूं। फिर कभी यहां आना हुआ तो आपसे मुलाकत करूंगा। उसने जवाब में कहा "हां जी सर जरूर..अपना ख्याल रखें गुड नाइट"।
चूंकि हम 12 बजे निकले थे और काम निपटाते हमें 3 बज गये थे। और 3 बजे सुरक्षाकर्मी के मुंह से गुड नाइट सुनकर मेरा दोस्त जोर से हंस पड़ा। लेकिन मैंने हंसने की बजाय उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा गुड नाइट भैया अपना ख्याल रखें।
चाहता तो मैं उसे गुड नाइट का अर्थ समझाकर उसकी बात को दुरुस्त कर सकता था। लेकिन मैं जानता था गुड नाइट का एक शब्द सिखाकर मैं इसे अंग्रेजी का पंडित नहीं बना सकता। ये व्यक्ति अधेड़ उम्र में अपना गांव छोड़कर यहां काम कर रहा है । इसके पीछे उसकी कितनी मजबूरियां होंगी। जिस परिवेश से ये शख्स आया है वहां गुड मॉर्निंग, गुड नाइट का चलन नहीं होगा। वैसे भी उसके गुड नाइट बोलने के भाव से ऐसा प्रतीत हुआ की उसके लिये इसका अर्थ किसी के लिये सम्मान में कहे जाने वाले शब्द हैं। इसलिये उसके इस भाव को मैं मरने नहीं देना चाहता था।
आज सीखने को मिला की भावनाएं कभी शब्द की मोहताज नहीं होती। यदि हमारे भावों में सच्चाई हो तो उसे हम किसी भी भाषा या माध्यम से प्रस्तुत करें, सामने वाला समझ ही जाता है। गुड नाइट की बात पर हसने वाला मेरा दोस्त भी मेरी बात अच्छे से समझ गया था और अब शांत मुद्रा में गाड़ी वापस घर की ओर दौड़ाये जा रहा था।
मौलिक
विनोद विद्रोही
नागपुर(7276969415)
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