बिन पटाखे दीवाली सून!

आम जन की भावनाओं पर
इस कदर नहीं वार करना चाहिये।
सम्माननीय न्यायलय को अपने
फैसले पर पुनः विचार करना चाहिये।।

माना पटाखे घात हैं स्वच्छ
वातावरण के संकल्पों पर।
किंतु पहले नज़र तो डालो इसको
दूषित करने वाले अन्य विकल्पों पर।।

दीवाली तो साल में एक बार
ही मनाते हैं।
पर उनका क्या साहब, जो रोज
प्रदूषण फैलाते हैं।।

अदालत के हर फैसले को,
मेरी कलम सदा सम्मान कहेगी।
पर सच तो ये भी है ये दीवाली
ऊंची दुकान और फीका पकवान
रहेगी।।

सुन लो गर ना तुमने अब
तक सुना होगा।
प्रजा जश्न मनायेगी और
दरबार सूना होगा।।

विनोद विद्रोही
नागपुर(7276969415)

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