इस ताज्जुब पर मुझे ताज्जुब है...
आज सुबह घर से बाहर जाने के लिये तैयार हो रहा था की टेबल पर रखा फोन गुर्राने लगा। देखा तो दिल्ली के एक दोस्त का फोन था। दरसल इस दोस्त से एक बार ही मिला हूं वो भी 10 साल पहले अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की एक कार्यक्रम में मुलाकत हुई थी। आज अचानक उसका फोन देख उतनी हैरानी नहीं हुई जितनी हैरानी उससे बात करने के बाद हुई। शुरुआत में हाल-चाल और इधर उधर की बात के बाद उसने कहा... "यार आजकल तुम्हारे पोस्ट फ़ेसबुक पर पढ़ते रहता हूं। तुम्हारी हिंदी काफ़ी अच्छी है। लेकिन इस बात पर बड़ा ताज्जुब है की तुम तो नागपुर रहते हो जो महाराष्ट्र में आता है, फ़िर इतनी अच्छी हिंदी कैसे सीख गये।" दोस्त कि यह बात सुनकर मुझे उससे ज्यादा ताज्जुब हुआ। वहीं मेरा मन 9 साल पहले आईआईटी कानपुर के उस प्रोग्राम में चला गया जहां एक वाद-विवाद स्पर्धा के कार्यक्रम में संचालक ने भी मुझे मजाक में ही सही लेकिन कहा था "काफ़ी हैरानी और खुशी की बात है कि नागपुर महाराष्ट्र से भी कोई हिंदी स्पर्धाओं का प्रतिनिधित्व कर रहा है" दोस्तों ताज्जुब मुझे इस बात पर है की अच्छी हिंदी बोलने पर कोई हैर...
Comments
Post a Comment