देश के जवानों को ढंग की रोटी मय्यसर कर दो...

कब तक दिखाओगे तुम ख्वाबों के ये हसीन बाग,
अगर धुआं उठा है तो जरूर लगी होगी कहीं आग।
आज फिर ख्याल आया है, मंत्रियों के लिए बनी कैंटीनों का,
जहां दो रुपल्ली में उठाते हैं मजा ये कैफे-चीनो का।
अपनी इन सुविधाओं पर तुम खूब इतराते हो,
बीस रुपल्ली में तंगड़ी-कबाब जमकर दबाते हो।
तुम खींचकर खाते हो चिकन बिर्यानी,
और जवानों को मिलता है दाल का पानी।
एक विनंति है सत्ता के कर्णधारों से,
मत करो हमें वंचित हमारे ही अधिकारों से।
होने वाली हर असुविधा को तुम आज बेअसर कर दो,
देश के जवानों को ढंग की रोटी मय्यसर कर दो।।
विनोद विद्रोही

Comments

Popular posts from this blog

इस ताज्जुब पर मुझे ताज्जुब है...

जिंदगी इसी का नाम है, कर लो जो काम है...

ढंग की मौत का तो इंतजाम कर दो...