क्या सचमुच मेरा भारत महान है...

वाह के राजनीति मान गए तेरे हथकंडों को,
टिकट मिल जाता है जेल में बैठे गुंडों को।
तुम्हारे मधुर संबंधों की क्या बात है,
भूख-गरीबी लगता है सब इसी की सौगात है।।

कल तक जिनको तुमने ही ठहराया था अपराधी,
आज वो बने बैठे हैं तुम्हारे खास साथी।
सचमुच, कुर्सी का ये लोभ सबकुछ करा जाता है,
बात सत्ता की हो तो दुश्मन भी दोस्त बन जाता है।।

यहां चोर-उच्चके मिलकर चलाते अपनी राजनीतिक दुकान हैं,
क्या फर्क पड़ता है किसके पास रोटी है, किसके सर पर नहीं मकान है।
नहीं देखे जाते संविधान की छाती पर ये जो चोट के निशान हैं,

क्या सचमुच मेरा भारत महान है।।

विनोद विद्रोही

Comments

Popular posts from this blog

इस ताज्जुब पर मुझे ताज्जुब है...

जिंदगी इसी का नाम है, कर लो जो काम है...

ढंग की मौत का तो इंतजाम कर दो...