साक्षी तुम इस देश का कल थे, आज नहीं...

साक्षी तुम इस देश का कल थे, आज नहीं,
तुम सबकुछ हो सकते हो पर महाराज नहीं।
स्वयंघोषित मज़हब के तुम सरताज नहीं,
तुम कुछ भी हो पर इंसानियत की आवाज़ नहीं।।
गंगो-जमुनी तहज़ीब, सर्व धर्म संभाव के हम प्रणेता हैं,
मुझे दुख है कि तुम जैसे हमारे नेता हैं।
तुम्हारी ये सोच नहीं दीमक है,
तुम्हारा ये बयान नहीं, दूध में नमक है।।
विनोद विद्रोही

Comments

Popular posts from this blog

इस ताज्जुब पर मुझे ताज्जुब है...

जिंदगी इसी का नाम है, कर लो जो काम है...

ढंग की मौत का तो इंतजाम कर दो...