ये कैसा दौर है समाजवादी का...
सत्ता की मलाई खाकर वो कुछ इस कदर फूल गया,
चाचा तो छोड़ो, बाप तक को भूल गया।
चलो माना आज कई विधायक तु्म्हारे साथ हैं,
पर पुत्रधर्म ना निभाना भी एक विश्वासघात है।।
ये कैसा दौर है समाजवादी का,
परिदर्श दिख रहा सिर्फ बर्बादी का।
सम्मान की लड़ाई में रिश्तों के टूटने का भय रहता है,
घर में भेदी हो तो लंका ढह जाना तय रहता है।।
विनोद विद्रोही
चाचा तो छोड़ो, बाप तक को भूल गया।
चलो माना आज कई विधायक तु्म्हारे साथ हैं,
पर पुत्रधर्म ना निभाना भी एक विश्वासघात है।।
ये कैसा दौर है समाजवादी का,
परिदर्श दिख रहा सिर्फ बर्बादी का।
सम्मान की लड़ाई में रिश्तों के टूटने का भय रहता है,
घर में भेदी हो तो लंका ढह जाना तय रहता है।।
विनोद विद्रोही
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