हिमस्खलन नहीं सिस्टम का चरित्र स्खलन है!
कुदरत का कहर कहूं या कहूं कोई सितम,
जवानों की शहादत आज फिर आंखें हैं नम।
समझ नहीं आता ये हिमस्खलन है,
या देश के सिस्टम का चरित्रस्खलन है,
जो भी है जवानों की लाशों को देखकर सीने में जलन है।।
पहाड़ों की बर्फ को पिघल जाती है,
तुम्हारा दिल क्यों नहीं पिघलता।
बात करते हो चांद पर जाने की, लेकिन जमीनी हकीकत से परे हो,
तुमको भी फर्क पड़ता अगर सीमा बेटे तुम्हारे मरे हो।।
जवानों की मौत पर कब तक घड़ियाली आंसू बहाओगे,
प्रकृति के नाम पर अपनी विकृति कब तक छुपाओगे।
कुदरत नहीं इन जवानों की मौत के तुम जिम्मेदार हो,
घर में छुपे बैठे तुम सबसे बड़े गद्दार हो।।
विनोद विद्रोही
जवानों की शहादत आज फिर आंखें हैं नम।
समझ नहीं आता ये हिमस्खलन है,
या देश के सिस्टम का चरित्रस्खलन है,
जो भी है जवानों की लाशों को देखकर सीने में जलन है।।
पहाड़ों की बर्फ को पिघल जाती है,
तुम्हारा दिल क्यों नहीं पिघलता।
बात करते हो चांद पर जाने की, लेकिन जमीनी हकीकत से परे हो,
तुमको भी फर्क पड़ता अगर सीमा बेटे तुम्हारे मरे हो।।
जवानों की मौत पर कब तक घड़ियाली आंसू बहाओगे,
प्रकृति के नाम पर अपनी विकृति कब तक छुपाओगे।
कुदरत नहीं इन जवानों की मौत के तुम जिम्मेदार हो,
घर में छुपे बैठे तुम सबसे बड़े गद्दार हो।।
विनोद विद्रोही
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